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महाकवि शोभन और उनका काव्य
उपलब्ध हुई, इससे भी इस प्राचीन कृति का महत्त्व स्पष्ट होता है । महाकवि शोभन मुनि के पश्चात् होनेवाले कई जैन तथा जैनेतर विद्वानों पर शोभनकृत इस रचना का प्रभाव प्रतीत होता है । फलस्वरूप महाकवि धनञ्जय. वागभट - अमरचन्द्रसरि - कीर्तिराजोपाध्याय, श्रीयशोविजय उपाध्याय के बनाये हुए द्विसंधानमराकान्य, नेमिनिर्वाणकाव्य, काव्य-कल्पलता, नेमिनाथ महाकाव्य और ऐन्द्रस्तुति आदि कई ग्रन्थों में शब्दालंकारों का चमत्कार इसी शैली का मिलता है । जिससे हम यह कह सकते हैं कि प्रस्तुत कृति का साहित्य में ऊँचा स्थान है और मालव देश इसके लिए गौरव का अधिकारी है।
इसकी सुन्दरता, गूढार्थता तथा यमकादि चमत्कार से मुग्ध होकर कई बडे विद्वानों ने इस पर टीकाएँ लिखी है। उन टीकाओं में नव टीकाएँ तो संस्कृत भाषा में बनी हैं, जिनके कर्ता प्रसिद्ध विद्वान् और कवि थे । प्रसन्नता की बात है कि एक टीका चरित्र-नायक शोभन मुनि के बडे भ्राता महाकवि धनपाल ने भी बनायी है । यह टीका छपकर सूरत से प्रकाशित भी हो चुकी है ।
बीसवीं सदी में जर्मन, अंगरेजी, गुजराती और हिन्दी आदि भाषाओं में भी इस कृति की टीकाएँ हुई है। जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् डा. याकोबी आदि महानुभावों ने भी टीकाएं लिखी हैं। प्रो. हीरालाल रसिकदास एम० ए० ने कई प्राचीन टीकाओं का संपादन करके एक टीका सूरत से प्रकाशित कराई है । श्रीमान् अजितसागरसूरिजी
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