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महाकवि शोभन और उनका काव्य
धारानगरी में फैल गयी । यह शोभन मुनि के विशुद्ध संयम और प्रकांड पांडित्य काही फल था। इससे शोभन मुनि की कीर्ति चारों ओर बिजली के वेग सी व्याप्त हो गयी । अपनी सफलता और भाई के साथ टूटे हुए संबन्ध का धर्म-संबन्ध स्थापन, इन दोनों कारणों से शोभन मुनि भी निस्सीम आनन्द और संतोष का अनुभव करने लगे ।
धनपाल का संक्षिप्त परिचय
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सिद्धसारस्वत कवि धनपाल का जीवन दिन प्रति दिन अधिक से अधिक धार्मिक होता गया । वह श्रद्धा से शुद्ध श्रावक धर्म को पालने लगा । उसने राजा भोज को समझाकर मालवे में जैन साधुओं के विहार- निषेध की आज्ञा उठवायी । अब जैन साधु मालवा प्रान्त में आनन्द पूर्वक विचरने लगे । कल्पना-शक्ति तथा शब्दार्थ की प्रौढता में कादम्बरी को भी हरानेवाली नव रसों से पूर्ण "तिलकमंजरी" नामक आख्यायिका बनाकर धर्मपाल ने जैन साहित्य तथा अपने को यशस्वी बनाया । इसके उपरान्त धनपाल कवि ने 'सत्यपुरीय, वीरोत्साह, वीरस्तव, पाइअलच्छी नाममाला, ऋषभपंचाशिका और सावथविहो आदि ग्रन्थ भी बनाये, जो संस्कृत और प्राकृत- साहित्य में आज भी अपना बहुत ऊँचा स्थान रखते हैं । अपने समय में धनपाल महाकवियों तथा प्रचण्ड विद्वानो में माना जाता था । इसकी समस्त भारत में धाक थी। इसने 'कौलिक विधर्म' आदि बडे पण्डितों को परास्त किया था ।