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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाकवि शोभन और उनका काव्य र्शन सहित सम्यग्ज्ञान की उपार्जना और दूसरी ओर शुद्ध चरित्र की आराधना की । ये पहले ही से उद्भट विद्वान् थे । अब इन बातों के मिलने से महान् प्रभावशाली बन गये । थोडे ही समय में इनको प्रतिष्ठा प्रान्त में ही नहीं वरन् अन्य प्रान्तों में भी फैल गई। चारों ओर इनके ज्ञान की धाक सी जम गई। अपने शिष्य की बढती उज्ज्वल कीर्ति को देखकर श्री महेन्द्रसूरि का हृदय समुद्र की तरह आनन्द से हिलोरें लेना लगा। धन पाल का क्रोध और जैन साधुओं का विहारसंघ इधर शोभन दीक्षा लेकर मालवे में अपने यश को बढा रहे थे, उधर धनपाल अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार शोभन को दीक्षा दिलाने के कारण पिता से सब सम्बन्ध तोड कर जैन साधुओं का कट्टर विरोधी बन गया । केवल विरोध से ही उसको सान्त्वना न मिली, उसने भोजराजा के कान भरकर मालवा भूमि में जैन साधुओं का विहार (भ्रमण आगमन) तक बंद कराने की आज्ञा निकलवा दी । भारत भूमि में धर्म-द्वेष में अपनी सत्ता और शक्तियों का अनुचित उपयोग करने के ऐसे कितने ही उदाहरण मिलते हैं । मालवे में जैन मुनियों के दर्शन दुर्लभ होगये। लगातार बारह वर्ष तक यही हाल रहा । जैन साधुओं का बिहार बंद होने से मालवे के जैन लोगों में उदासीनता और दुःख के भाव फैल गये । मालवे के जैन साधुओं के लिए तरसने लगे। की आज्ञा निकलय का अनुचितम धर्म-द्वेष में For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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