________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हेमचन्द्राचार्य की दीक्षा कब और कहां हुई
८३
काल-क्रमानुसार प्राचीन “कुमारपाल-प्रतिबोध” उसके पश्चात् का 'प्रभावकचरित्र' तत्पश्चात् का 'प्रवन्धचिन्तामणि' उसके बाद का "प्रबंध-कोष" और उसके बाद का "कुमारपाल-प्रबंध" (जिनमंडन का) है।
हेमचन्द्राचार्य को दीक्षा वि० सं० ११५० में पांच वर्ष की उम्र में हुई है यह बतलाने वाला प्राचीन ग्रन्थ फक्त एक ही प्रभावक-चरित्र है, और बुलहर' साहब आदि ने इसके उल्लेख पर से वैसा माना है । प्रभावक चरित्र से पूर्ववती ग्रन्थ में पांच वर्ष का उल्लेख नहीं है। ऐसो छोटी उम्र में जैन साधु की दीक्षा देना जैन शास्त्रों में मना लिखा है। और देना उचित भी नहीं मालूम होता है, क्यों कि जैन साधु की क्रिया बडी कडो होती है । इसलिए वि० सं० ११५४ में करीब नौ वर्ष की उम्र में हेमचन्द्र को दीक्षा हुई है ऐसा मानना उचित है। यानी वि० सं० ११५४ में हेमचन्द्राचार्य की दीक्षा हुई है, ऐसा मेरा मत है ।
१ आगे जाते डा. जि. बुहलर साहब ने भी उसी हेमचन्द्राचार्य के चरित्र में कहा है कि 'इनकी दीक्षा के समय के विषय में मेरुतुङ्ग (प्रबन्धचिन्तामणिकार) बहुत करके सच्चे हैं (प्र. चिन्तामणि में दीक्षा की आठ वर्ष की लिखी है) और स्थान के विषय में प्रभावक-चरित्र बहुत करके सच्चा है"। इससे भी हमारे मत की पुष्टि होती है।
For Private and Personal Use Only