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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
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दिग्विजय
कुमारपाल में महत्वाकांक्षा थी, वीरता और प्रताप था । कोंकण के पराक्रमी मल्लिकार्जुन राजा को हरा कर उसका करोडों का माल लूटा। इसको परास्त करने के लिये अम्बड सेनापति को भेजा था जो जैन था। दक्षिण में विजयनगर काञ्ची तक कुमारपाल का राज्य हो गया था । कुमारपाल पूर्व, उत्तर, पश्चिम दिशाओं में भी दिग्विजय करने गया । इस दिग्विजय में कुमारपाल को बहुत सफलता मिली। 'प्राकृत कुमारपाल चरित्र' (सर्ग ६) में इसका उल्लेख यों है
(१) सिन्ध के राजा ने इसकी आशा मानी । (२) यवन देश के राजा ने कुमारपाल की आराधना की। (३) उव्वेश्वर इसका मित्र हुआ । (४) वाराणसी का स्वामी वश हुआ। (५) मगध और गौड के राजा ने इस राजा को भेंट की। (६) कान्यकुब्ज-सेना का इसने पराभव किया । (७) दशार्णभद्र देश का राजा इसके भय से मर गया और उसका शहर लूट लिया गया। (८) चेदि नगर के राजा का इसने गर्व मिटाया । (९) मथुरा के राजा ने कुमारपाल से माफी मांगी। (१०) जाङ्गलपति ने नम्र होकर प्रार्थना की।
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