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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir __ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. १३ भावहिंसा नही और विना भावहिंसाके पाप नही, तो यही मिशाल मंदिर मूर्ति के लिये क्यों न समजी जाय ? ___ जैनागम ज्ञातामत्रमें लिखा है कि--थावछापुत्रमुनि और शुकदेवजीमुनि हजार हजार जैनमुनियोक साथ और शेलकराजरिषि पांचशो जनमुनियोके साथ पुंडरीकपर्वतपर मुक्ति गये, पुंडरीकपर्वतका दुसरा नाम शत्रुजयतीर्थ है, रायपसेणीमत्रमें बयान है कि सूर्याभदेवताने तीर्थकर महावीरस्वामीके सामने बत्तीस तरहका नाटक किया, नाटक करनेमें वायुकायके जीवोकी हिंसा हुई, बतलाइये ! उस हिंसाका पाप किसकों लगेगा? अगर कहा जाय सूर्याभदेवताका इरादा धर्मका था इसलिये पाप नहीं तो फिर कोई श्रावक जिनप्रतिमाके सामने इरादे धर्मके नाटक करे तो उसको पाप कैसे लगेगा! तीर्थंकरदेव जबजब विहारकरके एकगांवसे दुसरेगांव जाते थे, ऊसगांव नगरके राजेमहाराजे हाथी, घोडे, डंके निशान, रथ वगेरा जुलुसके सामन आते थे, रास्तेमें वायुकायके जीवोकी हिंसा होती थी, बतलाइये! उसका पाप किसको लगता था? अगर कहा जाय ऊनराजे महाराजेको लगता था तो वें ऐसा क्यों करते थे? तीर्थंकरदेवोने उनको मना क्यों नहीं किया ? अगर कहा जाय उनके मनःपरिणाम धर्मके थे, इसलिये पाप नही लगता था, तो फिर इसीतरह तीर्थयात्रा वगेरामेभी पाप नही, यह साबीत दुवा, जनमुनि दिनमें दोदफे अपने कपडोंकी प्रतिलेखना करते है, इसमें वायुकायके जीवोंकी हिंसा होती है, बतलाइये ! इसका पाप किसको लगेगा? पतिक्रमण करते वख्त ऊठना वेठना पडता है, उसमेंभी वायुकायके जीवोकी हिंसा होगी, व्याख्यान वाचते वख्त, गौचरी जाते वख्त, और गुरुओकी खिदमतमें वायुकायके जीवोंकी हिंसा होगी, खयाल करनेकी जगह है इसका पाप किसकों समजना? या कहा जाय यतनामे ये कार्य किये For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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