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हिदायत बुतपरस्तिये जैन ११ जवावमें मालुम हो-मूर्ति उस हालतकी है जब वे केवलज्ञानी देहधारी थे, मूर्तिपूजा जैनमें अवलसे है, जो महाशय फरमाते है बारहवर्षी दुकाल पडाथा. मूर्तिपूजा ऊस वख्तसे चली है, यह बात गलत है, अगर कोई इस दलीलकों पेश करे कि भगवानतो अनमोल थे, उनकी मूर्ति थोडे मूल्यमें क्यों विकती है ? जवाबमें मालुम हो जिनवानी अनमोल है, फिर जैनपुस्तक थोडे मूल्यमें क्यों विकते है ? ____ अगर कोई सवाल करे मूर्ति जड है या चेतन? मूक्ष्म है या बादर? मृत्तिमें गुणस्थान कितने पाइये? जवाबमें मालुम हो, धर्मशास्त्र जड है या चेतन? सूक्ष्म है या वादर? धर्मशास्रमें गुणस्थान कितने पाईये ? किसी जैनमुनिकी फोटोमें ऊतारी हुई तस्वीर हो उसमें गुणस्थान कितने कहना? जड कहना या चेतन? सूक्ष्म कहना या बादर? इस वातपर गौर कीजिये. अगर कोई इस दलिलकों पेंश करे कि-जिनेंद्रोकी मृत्तिमें चौतीस अतिशय और पेतीसवाणीके गुण कहां है? जवावमें मालुम हो कागज, स्याहीके बने हुवे आचारांग वगेरा मूत्रोमें जिनवानीके पेतीसगुण कहां है ? अगर कहा जाय उसके पढ़नेसे ज्ञान होता है तो इसीतरह जिनेंद्रोंकी मूर्तिको देखकरभी ज्ञान होता है, स्थानांगमूत्रमें दशतरहके सत्य कहे उसमें स्थापनाभी सत्य कही, फिर जिनमूर्ति जो जिनेंद्रोंकी स्थापना है, सत्य क्यों नहीं?
ज्ञातामूत्रमें जहां द्रौपदीजीका अध्ययन चला है, उसमें द्रौपदीजीकों स्वयंवरमंडपमै जानेकी तयारी हुई ऊस वख्त ऊनोने जिनप्रतिमाकी पूजा किई लिखा है और ऐसाभी पाठ है कि"जेणेव जिणघरे तेणेव उवागछह." जहां जिनमंदिर था वहां द्रौपदीजी गई, सौचो ! ऊसवख्त ऊसमंदिरमें खुद तीर्थकरदेव तो बेठे नहीं थे, तीर्थंकरदेवकी मृत्तिं बैठी थी, ऊली सबसे ऊसकों
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