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गडूच्यादिवर्गः। और कृमि, इनकामी हरनेवाला है. और इसका पका फल भारी है, वातको कुपित करनेवाला है. इसकों स्योनाक कहते हैं.
अथ बहत्पञ्चमूललक्षणगुणाः. श्रीफलः सर्वतोभद्रा पाटला गणिकारिका ॥ २९॥ स्योनाकः पंचभिश्चैतैः पंचमूलं महन्मतम् । पञ्चमूलं महत्निक्तं कषायं कफवातनुत् ॥३०॥
मधुरं श्वासकासनमुष्णं लघ्वग्निदीपनम् । टीका:-श्रीफल १, सर्वतोभद्र २, पाटला ३, गणिकारिका ४ ॥२९॥ सो. नापाठा ५, इन पांचोंसें बृहत्पंचमूल होता है. ये तिक्त, कसेला, और कफ, वातका हरनेवाला, है ॥ ३० ॥ और मधुर है, श्वास कासका नाशक, गरम, हलका, अग्निका दीपन करनेवाला है.
अथ शालिपर्णी(सरिवन)नामगुणाः. शालिपर्णी स्थिरा सौम्या त्रिपर्णी पीवरी गुहा ॥३१॥ विदारिगन्धा दीर्घाङ्गी दीर्घपात्रांशुमत्यपि । शालिपी गुरुच्छर्दिज्वरश्वासातिसारजित् ॥३१॥ शोषदोषत्रयहरी बृंहण्युक्ता रसायनी।
तिक्ता विषहरी स्वादुः क्षतकासकमिप्रणुत् ॥ ३३ ॥ टीका-शालिपर्णी, स्थिरा, सौम्या, त्रिपर्णी, पीवरी, गुहा ॥ ३१ ॥ विदारिगंधा, दीर्घाङ्गी, दीर्घपत्रा, अंशुमती, ये सरवनके नाम हैं. ये भारी है और वमन, ज्वर, श्वास, तथा अतीसारको हरनेवाला है ॥ ३२ ॥ शोप, त्रिदोष, इनका हरनेवाला है, और धातुओंका पुष्ट करनेवाला, और रसायन तिक्त और विषका नाशक, मधुर, क्षत, कास, और कमी, इनका हरनेवाला है. इसका नाम शालिपर्णी प्रसिद्ध है ॥ ३३॥
अथ एश्चिपर्णी(पिठवन)नामगुणाः. एनिपर्णी पृथक्पर्णी चित्रपर्ण्यहिपर्ण्यपि।
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