SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीः। हरीतक्यादिनिघंटे गुडूच्यादिवर्गः। अथ गुडूच्या उत्पत्तिर्नामानि गुणाश्च. अथ लंकेश्वरो मानी रावणो राक्षसाधिपः । रामपत्नी बलात्सीतां जहार मदनातुरः ॥ १॥ ततस्तं बलवान् रामो रिपुं जायापहारिणम् । ततो वानरसैन्येन जघान रणमूर्धनि ॥२॥ टीका-अथ गुडूची अर्थात् गिलोयकी उत्पत्ति लिखते हैं. अभिमानी राक्षसोंका राजा लंकेश्वर रावण कामातुर होके श्रीरामचंद्रकी पत्नी सीताको बलकरके हर ले गया ॥ १ ॥ फिर बलवान श्रीरामचंद्रने अपनी पत्नीके चुरानेवाले शत्रूकों वानरोंकी सेना संग ले रणमें मारा ॥२॥ हते तस्मिन् सुरारातौ रावणे बलगविते । देवराजः सहस्राक्षः परितुष्टोऽतिराघवे ॥३॥ तत्र ये वानराः केचिद्राक्षसैनिहता रणे। तानिन्द्रो जीवयामास संसिच्यामृतवृष्टिभिः॥४॥ ततो येषु प्रदेशेषु कपिगात्रात् परिच्युताः।। पीयूषबिन्दवः पेतुस्तेभ्यो जाता गुडूचिका ॥ ५॥ टीका-बलकरिके गर्वित देवताओंके शत्रु रावणके मरनेसें देवताओंका राजा इन्द्र श्रीरामचंद्रपर बहुत प्रसन्न हुआ॥३॥ उस रणमें राक्षसोंके हाथसें मारेगये जो वानर तिनकों इन्द्रनें अमृतकी वर्षाकर सींच जिवादिया ॥४॥ जिसदेशमें वानरोंके शरीरोंसें अमृतकी बूंद गिरी उससे गुडूची अर्थात् गिलोय पैदा हुई ॥५॥ गुडूची मधुपर्णी स्यादमृतामृतवल्लरी । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy