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कर्पूरादिवर्गः। सङ्कोचं पिशुनं धीरं बाह्रीकं शोणिताभिधम् । काश्मीरदेशजे क्षेत्रे कुङ्कुमं यद्भवेद्धि तत् ॥ ७४ ॥ सूक्ष्मकेशरमारक्तं पद्मगन्धं तदुत्तमम् । बाह्रीकदेशसंजातं कुंकुम पाण्डुरं मतम् ॥ ७५ ॥ केतकीगन्धयुक्तं तन्मध्यमं सूक्ष्मकेशरम् । कुङ्कुमं पारसीके यत् मधुगन्धि तदीरितम् ॥७६ ॥ इषत्पाण्डुरवणं तदधमं स्थूलकेशरम् । कुङ्कुमं कटुकं स्निग्धं शिरोरुग् वणजन्तुजित् ॥ ७७॥
तिक्तं वमिहरं वयं व्यङ्गदोषत्रयापहम् । टीका-कुंकुम ?, घुसूण २, रक्त ३, काश्मीर ४, पीतक ५ ॥ ७३ ॥ संकोच ६, पिशुन ७, धीर ८, बाह्रीक ९, शोणिताभिध १० ये केशरके दस नाम हैं ॥ ७४ ॥ जो केशर काश्मीरदेशमें उत्पन्न होता है वो सूक्ष्म रक्तवर्ण पद्मके सदृश गंधवाला उत्तम होता है बाह्रीकदेश अर्थात् वलखदेशमें जो केशर होता है ॥७॥ वो केवडेके सदृश गंधवाला सूक्ष्म होता है, मध्यम है. जो केशर पारस देशमें होता है उसको मधुगंधि कहते हैं ॥ ७६ ॥ वो कुछ सफेदवर्ण और मोटा होता है, वोभी मध्यम है, ये कडवा है, चिकना है, और शिरके रोग, और घाव, कृमि, इनको हरनेवाला है ॥७७॥ और तिक्त है, वमनका नाशक, रंगका कारक, और झाई तथा तीनों दोष इनकाभी हरनेवाला है ॥ ७८ ॥
अथ गोरोचननामगुणाः. गोरोचना तु मङ्गल्या वन्द्या गौरी च रोचना ॥ ७८॥ गोरोचना हिमा तिक्ता वश्या मङ्गलकान्तिदा।
विषाऽलक्ष्मीग्रहोन्मादगर्भस्रावक्षतास्त्रहत् ॥७९॥ टीका-गोरोचना १, मंगल्या २, वन्द्या ३, गोरी ४, रोचना ५, ये गोरोचनके नाम हैं ॥ ७८ ॥ ये शीतल है, तिक्त है, वशकरनेवाली है, मंगल तथा कांतिकारक है और विष, अलक्ष्मी, ग्रह, उन्माद, गर्भस्राव, तथा क्षत, इनकों दूर करनेवाली है ॥ ७९ ॥
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