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हरीतक्यादिनिघंटे कण्डूकुष्ठहरं नेत्र्यं सुगन्धं स्वेदगन्धनुत् । टीका-गौरासरको आंडीनामसे कहते हैं. गंधमार्जार १, वीर्यबल करनेवाला और कफवातका नाशक होता है ॥ १०॥ तथा कंडू, और कुष्ठ इनका हरनेवाला है, और नेत्रोंका हितकारी है, सुगन्ध है, पसीनाके गन्धकों नाश करनेवाला है. इसदेशमें इसे विल्लीलोटन कहते हैं.
अथ चन्दननामगुणाः. श्रीखण्डं चन्दनं नस्त्री भद्रःश्रीस्तैलपर्णिकः ॥ ११॥ गन्धसारो मलयजस्तथा चन्द्रद्युतिश्च सः । स्वादे तिक्तं कषे पीतं छेदे रक्तं तनौ सितम् ॥ १२॥ ग्रन्थिकोटरसंयुक्तं चन्दनं श्रेष्ठमुच्यते । चन्दनं शीतलं रूक्षं तिक्तमालादनं लघुः ॥ १३ ॥
श्रमशोषविषश्लेष्मतृष्णापित्तास्त्रदाहनुत् । टीका-श्रीखंड १, चंदन २, भद्रश्री ३, तेलपणिका ४॥ ११ ॥ गंधसार ५, मलयज ६, चंद्रद्युति ७, ये चंदनके नाम हैं. ये स्वादमें तिक्त है, घिसनेमें पीला है, और काटनेमें लाल और शरीरमें लगानेमें सफेद होता है ॥१२॥ गांठ और खोडसे युक्त ऐसा चंदन श्रेष्ट कहा है. ये शीतल, रूखा, और तिक्त है, हर्षकों देनेवाला है, और हलका है ॥ १३ ॥ तथा श्रम, शोष, और विष, कफ, तृपा, रक्तपित्त, और दाह, इनको जीतनेवाला है.
अथ पीतचंदननामगुणाः. कालीयकं तु कालीयं पीताभं हरिचन्दनम् ॥ १४ ॥ हरिप्रियं कालसारं तथा कालानुसार्यकम् ।
कालीयकं रक्तगुणं विशेषाव्यङ्गनाशनम् ॥ १५॥ टीका-पीतचंदनकों लौकिकमैं कलम्बक कहते हैं. कालीयक १, कालीय २, पीताभ ३, हरिचंदन ४ ॥ १४ ॥ हरिप्रिय ५, कालसार ६, कालानुसार्यक ७, ये पीतचंदनके नाम हैं. पीतचंदनमें रक्तचंदनके वरावर गुण होते हैं, और विशेषकरिके मुखकी झाईको हरता है ॥ १५ ॥
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