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हरीतक्यादिवर्गः ।
अथ क्षारद्वयनामगुणाः
स्वर्जिका यावकश्च क्षारद्वयमुदाहृतम् ॥ २५८ ॥ टंकणेन युतं तत्तु क्षारत्रयमुदीरितम् ।
मिलितस्तूक्तगुणवद्विशेषागुल्महृत्परम् ॥ २५९ ॥
टीका - सज्जीखार और जवाखार इनकों क्षारद्वय बोलते हैं. और सुहागाभी मिलानेसें क्षारत्रय होता है || २५८ || ये मिले हुए उक्तगुणोंकों करनेवाले हैं, विशेषकरके वायगोलाको हरते हैं ॥ २५९ ॥
अथ क्षाराष्टकनामगुणाः.
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पलाशवज्रीशिखरिचिंचार्कतिलनालजाः ।
यवजः स्वर्जिका चेति क्षाराष्टकमुदाहृतम् ॥ २६० ॥ क्षारा एतेऽग्निना तुल्या गुल्मशुलहरा भृशम् ।
टीका - पलास १, थूहर २, कचेरा ३, इमली ४, आक ५, तिल ६, जव ७, सज्जी ८, इन आठों क्षारोंकों क्षाराष्ट्रक कहते हैं || २६० ॥ ये क्षाराष्ट्रक अनिके समान है, वायगोला, तथा शूल, इनका हरनेवाला है.
अथ चक्र (चोक) नामगुणाः.
चुकं सहस्रवेधि स्याद्वसाम्लं शुक्रमित्यपि । चुक्रमत्यम्लमुष्णं च दीपनं पाचनं परम् ॥ २६१ ॥ शूलगुल्मविबंधामवातश्लेष्महरं सरम् ।
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कमितृष्णास्य वैरस्यहृत्पीडावह्निमान्द्यहृत् ॥ २६२ ॥ इति भावमिश्रविरचिते हरीतक्यादिनिघंटें हरीतक्यादिवर्गः समाप्तः ॥ १ ॥
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टीका - चुक्र १, सहस्रवेधी २, रसाम्ल ३, शुक्र ४, ये चोकके नाम हैं. चोक बहुत खट्टा होता है, गरम, दीपनीय, पाचन, है || २६१ || और शूल, यगोला, तथा विबंध, आमवात, और कफकों हरनेवाला, और दस्तावर है, तथा कृमि, तृषा, मुख स्वाद बिगडनेकों, हृदयकी पीडाकों, मन्दानीकोभी हरनेवाला है ॥२६२॥ इति श्रीहरीतक्यादिनिघंटे बालबोधनीटीकायां हरीतक्यादिवर्गः समाप्तः ॥ १ ॥
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