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हरीतक्यादिनिघंटे
तथा हलका होता है. और वातरक्त, कास, कुष्ठ, वात, कफ, इन समस्तरोगोंकों हरनेवाला है ।। १७५ ॥
अथ पुष्करमूलनामगुणाः.
उक्तं पुष्करमूलं तु पौष्करं पुष्करं च तत् । पद्मपत्रं च काश्मीरं कुष्ठभेदमिमं जगुः ॥ १७६ ॥ पौष्करं कटुकं तिक्तमुक्तं वातकफज्वरान् ।
हन्ति
शोथारुचिश्वासान्विशेषात्पार्श्वशूलनुत् ॥ १७७ ॥
टीका - पुष्करमूल १, पौष्कर २, पुष्कर ३, पद्मपत्र ३, काश्मीर ६, ये पुष्करमूलके नाम हैं. येभी कूटकाही भेद है || १७६ ।। पुष्करमूल कडवा है, और तिक्त है, और वात, कफ, तथा ज्वर इनकों मुक्ति करता है. तथा शोथ, अरुचि, श्वास, और विशेषकरके पार्श्वशूलकों, हरनेवाला है ॥ १७७ ॥
अथ हेमाका (चोक) नामगुणाः.
कटुपर्णी हैमवती मक्षीरी हिमावती । हेमाहा पीतदुग्धा च तन्मूलं चोकमुच्यते ॥ १७८ ॥ हेमाहा रेचनी तिता भेदिन्युत्क्लेशकारिणी । कृमिकण्डूविषानाहकफपित्तास्रकुष्ठनुत् ॥ १७९ ॥
टीका - कटुपर्णी १, हैमवती २, हेमक्षीरी ३, हिमावती ४, हेमाहा ५, पीतदुग्धा ६, ये चोकवृक्षके नाम हैं. और उसके मूलकों चोक कहते हैं ।। १७८ ॥ चोक दस्तावर है, तिक्त है, भेदन करनेवाली है, और जीमि चलानेवाली हैं, और कृमि, खुजली, विष, अफरा, कफरोग, मूत्रकृच्छ तथा रक्तपित्त, कुष्ठ, इनकोंभी हरनेवाली होती है ॥ १७९ ॥
अथ शृंगी ( काकडाशीगी) नामुगुणाः. शृंगी कर्कटंगी च स्यात्कुलीरविषाणिका । अजभृंगी च वक्रा च कर्कटाख्या च कीर्तिता ॥ १८० ॥ शृङ्गी कषाया तिक्तोष्णा कफवातक्षयज्वरान् । श्वासोऽर्ध्ववाततृट्कासहिक्कारुचिवमीन् हरेत् ॥ १८१ ॥
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