SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ हरीतक्यादिनिघंटे तथा हलका होता है. और वातरक्त, कास, कुष्ठ, वात, कफ, इन समस्तरोगोंकों हरनेवाला है ।। १७५ ॥ अथ पुष्करमूलनामगुणाः. उक्तं पुष्करमूलं तु पौष्करं पुष्करं च तत् । पद्मपत्रं च काश्मीरं कुष्ठभेदमिमं जगुः ॥ १७६ ॥ पौष्करं कटुकं तिक्तमुक्तं वातकफज्वरान् । हन्ति शोथारुचिश्वासान्विशेषात्पार्श्वशूलनुत् ॥ १७७ ॥ टीका - पुष्करमूल १, पौष्कर २, पुष्कर ३, पद्मपत्र ३, काश्मीर ६, ये पुष्करमूलके नाम हैं. येभी कूटकाही भेद है || १७६ ।। पुष्करमूल कडवा है, और तिक्त है, और वात, कफ, तथा ज्वर इनकों मुक्ति करता है. तथा शोथ, अरुचि, श्वास, और विशेषकरके पार्श्वशूलकों, हरनेवाला है ॥ १७७ ॥ अथ हेमाका (चोक) नामगुणाः. कटुपर्णी हैमवती मक्षीरी हिमावती । हेमाहा पीतदुग्धा च तन्मूलं चोकमुच्यते ॥ १७८ ॥ हेमाहा रेचनी तिता भेदिन्युत्क्लेशकारिणी । कृमिकण्डूविषानाहकफपित्तास्रकुष्ठनुत् ॥ १७९ ॥ टीका - कटुपर्णी १, हैमवती २, हेमक्षीरी ३, हिमावती ४, हेमाहा ५, पीतदुग्धा ६, ये चोकवृक्षके नाम हैं. और उसके मूलकों चोक कहते हैं ।। १७८ ॥ चोक दस्तावर है, तिक्त है, भेदन करनेवाली है, और जीमि चलानेवाली हैं, और कृमि, खुजली, विष, अफरा, कफरोग, मूत्रकृच्छ तथा रक्तपित्त, कुष्ठ, इनकोंभी हरनेवाली होती है ॥ १७९ ॥ अथ शृंगी ( काकडाशीगी) नामुगुणाः. शृंगी कर्कटंगी च स्यात्कुलीरविषाणिका । अजभृंगी च वक्रा च कर्कटाख्या च कीर्तिता ॥ १८० ॥ शृङ्गी कषाया तिक्तोष्णा कफवातक्षयज्वरान् । श्वासोऽर्ध्ववाततृट्कासहिक्कारुचिवमीन् हरेत् ॥ १८१ ॥ For Private and Personal Use Only '
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy