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हरीतक्यादिवर्गः। टीका-अब दोनोंप्रकारके हाऊवेरों के नाम तथा गुण लिखते हैं. जिस्में पहिलेका फल मीनयानी मछलीके सदृश कच्चे मांसके समान गंधवाला होता है, और दूसरा पीपलके फलके सहस आकारवाला मछलीके गंधके समान गंधवाला होता है. हपुषा, पुष्पवत्सा, और दूसरा अश्वत्थफला कहा है ॥ १०८ ॥ मत्स्यगंधा, प्लीहहंत्री, विषघ्नी, ध्वाक्षनाशनी, ये हाऊरके नाम हैं. और ये हाऊवेर तिक्त, मृदु, उष्ण, तथा कसेला और भारी होता है ॥ १०९ ॥ पित्तोदर और वातजनित ववासीर तथा संग्रहणी वायगोला और शूलरोग इन समस्तरोगोंका हरनेवाला है, और दूसरा हाऊवेरभी इसीके समान गुणवाला होता है, और इनदोनोंके रूप तथा भेदभी कहै हैं ॥ ११० ॥
अथ विडंगनामगुणाः. पुंसि क्लीबे विडङ्गं स्यात्कृमिघ्नं जन्तुनाशनम् । तंडुलश्च तथा वेल्लममोघा चित्रतंडुला ॥ १११ ॥ विडंगं कटु तीक्ष्णोष्णं रूक्षं वह्निकरं लघु ।
शूलाध्मानोदरश्लेष्मकमिवातविबन्धनुत् ॥ ११२॥ टीका-अब वायविडंगके नाम तथा गुण लिखते हैं, पुल्लिंग और नपुंसकलिंगमें वायविडंग होता है. कृमिघ्नः जन्तुनाशक, तण्डुल, वेल्ल, अमोघ, चित्रतण्डुल, ये छ वायविडंगके नाम हैं ॥ १११ ॥ फिर ये वायविडंग कडवा, तीखा, उष्ण,
और रूखा है, अग्निकों करनेवाला है, तथा हलका है, और शूलरोग, आध्मानरोग, उदररोग, कफरोग, कृमिरोग, वातरोग, कविजियत, इतने रोगोंको हरनेवाला है, और बहुतसे ग्रंथों में क्षुद्र, भूतन्दुला, घोषा, कराल, मृगगामिनी, विडंग येभी नाम वायविडंगके लिखे हैं ॥ ११२ ॥
अथ तुंबरुफलनामगुणाः. तुंबरुः सौरभः सौरो वनजः सानुजोऽन्धकः । तुम्बरु प्रथितं तिक्तं कटु पाकेऽपि तत्कटु ॥ ११३ ॥ रूक्षोष्णं दीपनं तीक्ष्णं रुच्यं लघु विदाहि च । वातश्लेष्माक्षिकर्णोष्ठशिरोरुक्गुरुताऊमीन् ॥ ११४ ॥ कुष्ठशूलारुचिश्वासलीहरुच्छ्राणि नाशयेत् ।
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