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हरीतक्यादिनिघंटे चंद्रशूरनामगुणाः.
चन्द्रिका चर्महन्त्री च पशुमेहनकारिका ॥ ९६ ॥
नन्दिनी कारवी भद्रा वासपुष्पा सुवासरा । चंद्रशूरं हितं हिक्कावात श्लेष्मातिसारिणाम् ॥ ९७ ॥ असृग्वातगदद्वेषी बलपुष्टिविवर्धनम् ।
टीका - अब चंद्रशूरके नाम तथा गुण लिखते हैं. चंद्रिका, चर्महंत्री, पशुमेहनकारिका ॥ ९६ ॥ नन्दनी, कारवी, भद्रा, वासपुष्पा, सुवासरा, ये ८ चंद्रशुरके नाम हैं. फिर ये चंद्रशूर हिचकीरोगकी, वातकफजनितरोगोंकी, तथा अतीसाररोगोंकी हित करनेवाली है ॥ ९७ ॥ रक्तरोगोंकों, वातरोगोंकों हरनेवाली तथा रक्तवातकों हरनेवाली, और बल तथा पुष्टिकों बढानेवाली है.
मेथिकादिचतुष्टयगुणाः.
मेथिका चंद्रशूरश्च कालाजाजी यवानिका ॥ ९८ ॥ एतच्चतुष्टयं युक्तं चतुर्बीजमिति स्मृतम् । तच्चूर्णं भक्षितं नित्यं निहन्ति पवनामयम् ॥ ९९ ॥ अजीर्ण शूलमाध्मानं पार्श्वशूलं कटिव्यथाम् ।
टीका - अब चार दानेके लक्षण और गुण लिखते हैं. मेथी, और चंद्रशूर, कालाजिरा, तथा अजमायन ॥ ९८ ॥ इन चारोंकों समान लेकर मिलानेसें चारदाना तथा चतुर्बीज कहते हैं. फिर इसके चूर्णकों नित्य सेवनकरनेसें बातके रोगोकों ॥ ९९ ॥ और अजीर्णकों, तथा शूलकों, अफराकों, तथा पसलीके दर्दकों और कमरकी पीडाको इत्यादि रोगोंकों हरता है.
अथ हिंगुनामगुणाः.
सहस्रवेधि जतुकं बाल्हीकं हिंगु रामठम् ॥ १०० ॥ हिंगुष्णं पाचनं रुच्यं तीक्ष्णं वातवलासहृत् । शूलगुल्मोदरानाहरूमिघ्नः पित्तवर्धनः ॥ १०१ ॥
टीका -- अब हिंगके नाम तथा गुण लिखते हैं. सहस्रवेधि, जतुक, बाल्हीक,
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