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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे सर्षपस्वरसैर्वापि शालिपिष्टकसंयुतैः ॥ ४० ॥ शण्डाकी रोचनी गु: पित्तश्लेष्मकरी स्मृता । कन्दमूलफलादीनि सस्नेहलवणानि च ॥ ४१ ॥ पत्रद्रव्येऽभिषूयन्ते तच्छुक्तमभिधीयते । शुक्तं कफनं तीक्ष्णोष्णं रोचनं पाचनं लघु ॥४२॥ पाण्डुक्रिमिहरं रूक्षं भेदनं रक्तपित्तकृत् । कन्दमूलफलाढयं यत्तत्तु विज्ञेयमासुतम् ॥ ४३ ॥ तद्रुच्यं पाचनं वातहरं लघु विशेषतः। मयं तु सीधुमैरेयमिरा च मदिरासुरा ॥४४॥ कादम्बरी वारुणी च हालापि बलवल्लभा । पेयं यन्मादकं लोके तन्मद्यमभिधीयते ॥ ४५ ॥ यथारिष्टं सुरा सीधुरासवाद्यमनेकधा । मयं सर्वं भवेदुष्णं पित्तकद्वातनाशनम् ॥ ४६ ॥ भेदनं शीघ्रपाकं च रूक्षं कफहरं परम् । अम्लं च दीपनं रुच्यं पाचनं चाशुकारि च ॥ ४७ ॥ तीक्ष्णं सूक्ष्मं च विशदं व्यवायि च विकाशि च । टीका-अनन्तर शण्डाकीका लक्षण और गुण राईसे युक्त मूलीके पत्तोंका रस और सरसोंके स्वरसमेंभी चावलकी पिठीसे युक्त इनसे शण्डाकी होतीहै ॥४०॥ शण्डाकी रोचन भारी पित्तकफकों करनेवाली कहींहै अब शुक्तका लक्षण और गुण कन्द मूल फल आदि और चिकनाई लवण ॥ ४१ ॥ येह जिस द्रव्यमें पड़ते हैं उसको शुक्त कहतेहैं शुक्त कफहरता तीखा उष्ण रोधन पाचन हलका ॥४२॥ पाण्डु क्रिमिकों हरता रूखा भेदन रक्तपित्तकों करनेवालाहै अब सन्धानका लक्षण और गुण कन्द मूल फलसें जो युक्त होताहै उसको आसुत जानना चाहिये ॥४३॥ वोह रुचिकों करनेवाला पाचन वातहरता विशेषकरके हलका होताहै मद्य सीधू मैरेय इरा मदिरा मुरा ॥ ४४ ॥ कादंबरी वारुणी हाला बलवल्लभा यह मदिराके नाम, जो पानीहरनेवाला है उसकों लोक मद्य कहतेहैं ॥ ४५ ॥ जैसे अरिष्ट सुरा सीधु और आसव आदि अनेक प्रकारकेहैं सब मद्य उष्ण पित्तकों करनेवाले वातहरते॥४६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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