________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१८
हरीतक्यादिनिघंटे
रुचिकों करनेवाला पुष्टिकों देनेवाला बलके हित वस्तिशूलकों हरताहै मूत्रकृच्छ्रमें गुडकेसहित और पाण्डुरोगमें चित्रककेसहित हितहै ॥ ८३ ॥
अथामपक्कतक्रगुणाः सेवननिमित्तानिच. तक्रमामं कफं कोष्ठे हन्ति कण्ठे करोति च । पीनसश्वासकासादौ पक्कमेव प्रयुज्यते ॥ ८४ ॥ शीतकालेऽग्निमान्धे च तथा वातामयेषु च । अरुचौ स्रोतसां रोधे तक्रं स्यादमृतोपमम् ॥ ८५॥ तत्तु हन्ति गरच्छर्दि सेकविषमज्वरान् । पाण्डुमेदोग्रहण्यर्शो मूत्रग्रहभगन्दरान् ॥ ८६ ॥ मेहं गुल्ममतीसारं शूलप्लीहोदरारुचीः । श्वित्रकोष्ठगतव्याधीन्कुष्ठशोथतृषाकमीन् ॥ ८७ ॥ नैव तक्रं क्षते दद्यान्नोष्णकाले न दुर्बले । न मूर्च्छाभ्रमदाहेषु नरोगे रक्तपित्तजे । यान्युक्तानि दधीन्यष्टौ तद्गुणं तक्रमादिशेत् ॥ ८८ ॥ टीका - अनन्तर कच्चे और पके तक्रका गुण कच्चा महा कोष्ठमें कफकों हरता है और कण्ठमें कफकों करता है पीनस श्वास कासादिकमें पकाई योजना कियाजाता है || ८४ ॥ अनन्तर तक्र सेवनके कारण शीतल काल अग्निमान्द्य तथा वातरोगमेंभी अरुचिमें स्रोतोंके अवरोधमें तक अमृतके समान होता है || ८५ ॥ वोह विष वमन प्रसेक विषमज्वर इनकों और पाण्डुरोग मेद ग्रहणीरोग ववासीर मूत्र ग्रह भगन्दर इनकों ॥ ८६ ॥ तथा प्रमेह वायगोला अतीसार शूल लीहोदर अरुचि वित्र कोढगतरोग कुष्ठ शोथ तृषा कृमि इनकों हरता है || ८७ ॥ तत्रका अविषय तक्र क्षतमें न देवै न उष्ण कालमें न दुर्बलमें न मूर्च्छा भ्रम दाहमें न रक्त पित्तके रोगमें देवै अनन्तर गायआदिके तक्रोंका विशेष गुण जो आठ दहीयोंके गुण कहैं वह गुण तक्रमें जानलेवै ॥ ८८ ॥ इति तक्रवर्गः ।
अथ नवनीतगुणाः.
तत्र नवनीतस्य नामानि गुणाश्च. मृक्षणं सरजं हैयङ्गवीनं नवनीतकम् ।
For Private and Personal Use Only