________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे और नेत्रोंकों हितकारक, वायुरोग अफरा, वायगोला, तथा वमन और अतीसार इनकेभी हरनेवाले होते हैं ॥ ८५ ॥
अथ धान्यकस्य नाम गुणाश्च. धान्यकं धानकं धान्यं धाना धनियकं तथा । कुनटी धेनुका छत्रा कुस्तुम्बुरु वितुन्नकम् ॥ ८६ ॥ धान्यकं तुवरं स्निग्धमवृष्यं मूत्रलं लघु। तिक्तं कटूष्णवीर्यं च दीपनं पाचनं स्मृतम् ॥ ८७॥ ज्वरघ्नं रोचकं ग्राही स्वादुपाकी विदोषनुत् । तृष्णादाहवमिश्वासकासकार्यकमिप्रणुत् ॥ ८८॥
आई तु तद्गुणं स्वादु विशेषात्पित्तनाशि तत् । टीका-धान्यक, धानक, धान्य, धाना, धानेयक, कुनटी, धेनुका, छत्रा, कुस्तुम्बरु, वितुन्नक, ये धनियेके दस नाम हैं ॥ ८६ ॥ "फिर ये धनियां कसैला है, चिकना है, पुरुषलकों नाश करनेवाला है, मूत्रकों लानेवाला है, और हलका है, तिक्त है, कडवा है, गरम है, वीर्यवाला है, दीपन और पाचन है ॥ ८७॥ ज्वरका नाश करनेवाला है, रुचिकों उपजानेवाला है, दस्तोंकों बंद करता है, पाकमें मधुर है, त्रिदोषका नाशक है, और तृषा, दाह, वमन, तथा श्वास, कास, दुर्बलता और कृमि इन रोगोंका हरनेवाला है ॥ ८८ ॥ और हरा धनियाभी यहीगुणवाला जानों, मधुर है, विशेषकरिके पित्तका नाश करनेवाला है .
अथ शतपुष्पानामगुणाः. शतपुष्पा शताह्वा च मधुरा कारवी मिसिः ॥ ८९ ॥ अतिलम्बी सितछत्रा संहिता छत्रिकापि च । छत्रा शालेयशालीनौ मिश्रेया मधुरा मिसिः॥९० ॥ शतपुष्पा लघुस्तीक्ष्णा पित्तकद्दीपनी कटुः । उष्णा ज्वरानिलश्लेष्मव्रणशूलाक्षिरोगहृत् ॥ ९१ ॥ मिश्रेया तद्गुणा प्रोक्ता विशेषाद्योनिशुलनुत् ।
For Private and Personal Use Only