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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुग्धदधितक्रघृतमूत्रवर्गः। ३०७ माहिषं मधुरं गव्यात्स्निग्धं शुक्रकरं गुरु ॥ १४ ॥ निद्राकरमभिष्यन्दि क्षुधाधिक्यकरं हिमम् । छागं कषायं मधुरं शीतं ग्राहि तथा लघु ॥ १५॥ रक्तपित्तातिसारघ्नं क्षयकासज्वरापहम् । प्रजानामल्पकायत्वात्कटुतिक्तनिषेवणात् ॥ १६ ॥ स्तोकाम्बुपानाध्यामातसर्वरोगापहं पयः। मृगीनां जाङ्गलोत्थानामजाक्षीरगुणं पयः ॥ १७ ॥ आविकं लवणं स्वादु स्निग्धोष्णं चाश्मरीप्रणुत् । अहृद्यं तर्पणं वृष्यं शुक्रपित्तकफप्रदम् ॥ १८॥ गुरुकासेऽनिलोद्भुते केवले चानिले वरम् । टीका-वेवच्चेवाली गायके दूधका गुण छोटे बच्चेवाली और वेबच्चेवाली गायोंका दूध त्रिदोषकों करनेवालाहै वकेनीका दूध त्रिदोषकों हरता तर्पण बलकों करनेवाला होताहै अनन्तर देशविशेषकरके गुणविशेषकों कहतेहैं ॥ ११ ॥ जाङ्गल आनूप पहाड इनमें चरनेवालियोंका दूध यथोत्तर बहुतभारी होताहै और घृत आहारके अनुसार निकलता है ॥ १२॥ स्वल्प अन्न भक्षणसें हुवा क्षीण भारी कफकों करनेवाला होताहै वोह बलके हित अत्यन्त शुक्रकों करनेवाला और स्वस्थोंकों गुण देनेवाला है ॥ १३ ॥ खल घास कपासके बीज इनके खानेसें हुवा दूध गुणकरके हित होताहै अब भैसके दूधका गुण भैसका दूध मधुर चिकना शुक्रकों करनेवाला भारी ॥१४॥ निद्राकों करनेवाला अभिष्यन्दि अधिक क्षुधाकों करनेवाला शीतल है अब बकरीके दूधका गुण बकरीका दूध कसेला मधुर शीतल काविज तथा हलका होताहै ॥ १५ ॥ और रक्त पित्त अतीसार इनकों हरता क्षय कास ज्वर इनकों हरताहै बकरियोंका छोटा शरीर होनेसें और कटुतिक्तके सेवनसें ॥ १६ ॥ थोडा जल पीनेसें कसरत उसका दूध सर्वरोगकों हरताहै अब मृग आदियोंके दुग्धका गुण जंगलके मृगोंका दूध बकरीके दूधके समान होताहै ॥ १७॥ भेडीका दूध नमकीन मधुर चिकना गरम और पथरीकों हरताहै अहृद्य तर्पण पुष्ट शुक्र पित्त कफ इनकों करनेवाला ॥१८॥ भारी होताहै और वातके कासमें और केवल वातमें श्रेष्ठ है. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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