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वारिवर्ग: ।
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विद्वानोंनें कहा है लोकमें कुहेल ऐसा कहते हैं बरफ शीतल रूखा दारुण सूक्ष्मभी है ॥ २३ ॥ वोह न वातकों न पित्तकों न कफकों बिगाडता है.
अथ भौमजललक्षणानि.
भौममम्भो निगदितं प्रथमं त्रिविधं बुधैः ॥ २४॥ जाङ्गलं परमानूपं ततः साधारणं क्रमात् । अल्पोदकोऽल्पवृक्षश्च पित्तरक्तामयान्वितः ॥ २५ ॥ ज्ञातव्यो जाङ्गलो देशस्तत्रत्यं जाङ्गलं जलम् । बह्वम्बुर्बहुवृक्षश्च वातश्लेष्मामयान्वितः ॥ २६ ॥ देशोऽनूप इति ख्यात आनूपं तद्भवं जलम् । मिश्रचिह्नस्तु यो देशः स हि साधारणः स्मृतः ॥ २७ ॥ तस्मिन्देशे यदुदकं तत्तु साधारणं स्मृतम् । जाङ्गलं सलिलं रूक्षं लवणं लघु पित्तनुत् ॥ २८ ॥ वह्निरुत्कफकत्पथ्यं विकारान्हरते बहून् ।
आनूपं वार्यभिष्यन्दि स्वादु स्निग्धं घनं गुरु ॥ २९॥ वह्निरुत्करुहृद्यं विकारान् हरते बहून् ।
साधारणं तु मधुरं दीपनं शीतलं लघु ॥ ३० ॥ तर्पणं रोचनं तृष्णादाहदोषत्रयप्रणुत् ।
टीका - भूमिका जल और उसके भेद पंडितोंनें भूमिका जल तीनप्रकारका प्रथम कहाहै || २४ || क्रमसें जाङ्गल दूसरा आनूप और साधारण उसके लक्षण और गुण थोडा जल थोडे वृक्ष पित्तरक्तरोगयुक्त || २५ || ऐसा देश जङ्गल जानना उस्का जल जाङ्गल जानना चाहिये बहुत जल बहुत वृक्ष वातकफरोगसें युक्त ||२६|| ऐसा अनूपदेश मसिद्ध है वहांका जल आनूपहै और मिलेहुवे देशवाला जो लक्षण है वह साधारण कहा ॥ २७ ॥ उसदेशमें जो जल होता है वोह साधारण कहा है जाङ्गलजल रूखा नमकीन हलका पित्तहरता ॥ २८ ॥ अग्निकों करनेवाला कफकों करनेवाला हृय और बहुतसे विकारोंकों हरता है अनूपजल अभिष्यन्दि होता है और मधुर चिकना भारी होता है || २९ ॥ अग्निकों करनेवाला कफकारी हृय तथा ब
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