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कृतानवर्गः।
२७५ अथान्ये वटकप्रकाराः. मुद्गपिष्टाविरचितान्वटांस्तैलेन पाचितान् । हस्तेन चूर्णयेत्सम्यक् तस्मिंश्चूर्णे विनिःक्षिपेत् ॥ ७१ ॥ भृष्टं हिङग्वार्द्रकं सूक्ष्मं मरीचं जीरकं तथा। नीम्बूरसं जवानी च युक्त्या सर्व विमिश्रयेत् ॥ ७२ ॥ मुद्गपिष्टिं पचेत्सम्यक्स्थाल्यामास्तारकोपरि । तस्यास्तु गोलकं कुर्यात्तन्मध्ये पूरणं क्षिपेत् ॥ ७३ ॥ तैले तान् गोलकान्पक्त्वा क्वथिकायां निमजयेत् । गोलकाः पाचकाः प्रोक्तास्ते त्वाकवटा अपि ॥ ७४ ॥ मुद्गाकवटा रुच्या लघवो बलकारकाः । दीपनास्तर्पणाः पथ्यास्त्रिषु दोषेषु पूजिताः ॥ ७५॥ दालयश्चणकानां तु निस्तुषा यन्त्रपेषिताः । तन्नृण बेसनं प्रोक्तं पाकशास्त्रविशारदैः ॥ ७६ ॥ वटिका बेसनस्यापि कथिकायां निभर्जिता।
रुच्या विष्टम्भजननी बल्या पुष्टिकरी स्मृता ॥ ७७ ॥ टीका-मुंगकी पिट्टीसें बनी वडीकों तेलसें पकावै उस्कों हाथसें अच्छीतरह चूर्ण करै उसचूरेमें इनकों डालै ॥ ७१ ॥ भूनी हींग अद्रक मिरच तथा जीरा इनकों पीसके डाले और नींबूका रस अजवायन इनकों युक्तिसे सबकों मिलावै ॥ ७२ ॥ तसलेमें कपडेके ऊपर मुद्गकी पिट्ठीकों अच्छीतरह पकावै उसका गोलक करके उसके बीचमें पूरण भरे ॥ ७३ ॥ इनगोलकोंकों तैलमें पकाके कढीमें डुबादेवै गोलक पाचक है और अक वटभी उसीकों कहतेहैं ॥ ७४ ॥ मूंगके आईवटक रुचिकों करनेवाले हलके बलकारक है और दीपन तर्पण पथ्य और तीनों दोषोंको अच्छेहैं ॥ ७६ ॥ चनेआदियोंकी दालोंकों वेछिलके करके चक्कीमें पीसै उस चूर्णकों बेसन पाकशास्त्रके जाननेवालोंने कहाहै ॥ ७६ ॥ बेसनकी वटिका भूनकै कढीमें पकीहुई रुचिकों करनेवाली विष्टंभको करनेवाली बलकेहित पुष्टिकों करनेवाली कहींहै ॥ ७७॥
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