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हरीतक्यादिनिघंटे गर्गरः पित्तलः किंचिदातजित्कफकोपनः । कविका मधुरा स्निग्धा कफना रुचिकारिणी ॥ ११४॥ किञ्चित्पित्तकरी वातनाशिनी वन्हिवर्धिनी। वर्मिमत्स्यो हरेद्वातं पित्तं रुचिकरो लघुः ॥ ११५॥ दण्डमत्स्यो रसे तिक्तः पित्तं रक्तं कर्फ हरेत् । वातसाधारणः प्रोक्तः शुक्रलो बलवर्धनः ॥ ११६ ॥ एरङ्गी मधुरः स्निग्धो विष्टम्भी शीतलो लघुः। शिशिरो मधुरो रुग्यो वातसाधारणः स्मृतः ॥ ११७ ॥ गरनी मधुरा तिक्ता तुवरा वातपित्तहत् । कफनी रुचिकल्लघ्वी दीपनी बलवीर्यकत् ॥ ११८॥ मद्गुरी वातहबल्यो वृष्यः कफकरो लघुः । सपादमत्स्यो मेधाऊन्मेहक्षयकरश्च सः ॥ ११९ ॥ वातपित्तकरश्चापि रुचिरुत्परमो मतः। प्रोष्ठी तिक्ता कटुः स्वादुः शुक्रनी कफवातजित् ॥ १२०॥ स्निग्धास्यकण्ठरोगनी रोचनी च लघुः स्मृता। क्षुद्रा मत्स्याः स्वादुरसा दोषत्रयविनाशनाः ॥ १२१ ॥ लघुपाका रुचिकरा बलदास्ते हिता मताः ।
अतिसूक्ष्माः पुंस्त्वहरा रुच्याः कासानिलापहाः॥ १२२॥ टीका-सौरी काविज हृद्य मधुर कसेली कहीहै ॥ ११३ ॥ गर्गरा पित्तकों करनेवाली कुछ एक वातकों हरनेवाली कफकों कुपित करनेवाली है कवई मधुर चिकनी कफहरती रुचिकों करनेवाली ॥ ११४ ॥ कुछएक पित्तकों करनेवाली वातहरती अग्निकों बढानेवाली है जाम्बीमली वातपित्तकों हरतीहै और रुचिकों करनेवाली हलकीहै ॥ ११५॥ दण्डारी मछली रसमें तिक्त और पित्त रक्त कफ इनकों हरतीहै तथा साधारण वातकों करनेवाली शुक्रकों करनेवाली और बलकों बढानेवाली कहीहै ॥ ११६ ॥ अरंगी मधुर चिकनी विष्टम्भकों करनेवाली शीतल हलकी होतीहै अथ पापता तिक्त पित्तकफकों हरती शीतल मधुर रुचिकों करनेवाली सा
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