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२५३
मांसवर्गः। अथ पक्षिनामानि गुणाश्च. पक्षी खगो विहङ्गश्च विहगश्च विहङ्गमः ॥ ५३ ॥ शकुनिर्विः पतत्री च विष्किरो विकिरोऽण्डजः। धान्याः कुरचरायेऽत्र तेषां मांसं लघूत्तमम् ॥ ५४ ॥ आनूपं बलकन्मांसं स्निग्धं गुरुतरं स्मृतम्। वर्तीको वर्त्तकश्चित्रस्ततोऽन्या वर्तकाः स्मृताः ॥ ५५॥ वर्तकोऽग्निकरः शीतो ज्वरदोषत्रयापहः । सुरुच्यः शुक्रदो बल्यो वर्तकाल्पगुणास्ततः ॥ ५६ ॥ लावा विष्किरवर्गेषु ते चतुर्धा मता बुधैः। पांशुलो गौरकोऽन्यस्तु पौण्डरीकोदरस्तथा ॥ ५७ ॥ लावा वह्निकराः स्निग्धा गरना ग्राहिका हिताः। पांशुलः श्लेष्मलस्तेषु वीर्यो ह्यनिलनाशनः ॥ ५८ ॥ गौरो लघुतरो रूक्षो वह्निकारी त्रिदोषजित् । पौण्ड्रकः पित्तकत्किञ्चिल्लधुर्वातकफापहः ॥ ५९॥
दमेरो रक्तपित्तनो हृदामयहरो हिमः । टीका-अब पक्षियोंके नाम और गुण पक्षी खग विहंग विहग विहंगम शकुनी वि पतत्री विष्किर विकिर अंडज यह पक्षियोंके नामहैं ॥ ५३ ॥ धान्य और कुरचर जो इस्में हैं उनके मांस हलके और अच्छेहैं ॥ ५४ ॥ आनूपमांस बलकारी चिकना गुरुतर कहाहै उनविष्किरोंमें वटेर वटई वर्तीक वत्तिक यह वटेरके नाम हैं ॥५५॥ और उस्सें दूसरा वर्तक कहाहै वटेर अग्निदीपन शीतल ज्वर और तीनोंदोष इनकों हरताहै और अच्छा रुचिकों करनेवाला शुक्रकों करनेवाला बलके हित होताहै और वटई उस्से गुणमें अल्प है ॥५६॥ विष्करवर्गमें वोह चारप्रकारका पंडितोंने मानाहै पंशुल गौरक और दूसरा पौण्डरीक उदर यह लवाके भेद हैं।॥५७॥ लवा अग्निकों करनेवाला चिकना विषहरता काविज और पथ्यहै और उन्में पांशुल कफकारी शुक्रकों करनेवाला वातहरताहै ॥ ५८ ॥ गौर बहुत हलका रूखा दीपन और त्रिदोषको हरनेवाला है पौंड्रक पित्तकों करनेवाला कुछ हलका वातकफको हरताहै ॥ ५९॥ दमेर रक्तपित्तकों हरता और हृदयरोगकों हरता शीतल है.
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