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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मांसवर्गः । शाकुलः पृथुरोमा च स सुदर्शन इत्यपि । रोहिताद्यास्तु ये जीवास्ते मत्स्याः परिकीर्तिताः ॥ ४१ ॥ मत्स्याः स्निग्धोष्णमधुरा गुरवः कफपित्तलाः । वातघ्ना बृंहणा वृष्या रोचका बलवर्धनाः ॥ ४२ ॥ मद्यव्यवायसक्तानां दीप्ताग्नीनां च पूजिताः । हरिणः शीतलो बद्धविण्मूत्रो दीपनो लघुः ॥ ४३ ॥ रसे पाके च मधुरः सुगन्धिः सन्निपातहा । एणः कषायो मधुरः पित्तास्रुक्कफवातहृत् ॥ ४४ ॥ संग्राही रोचनो बल्यो ज्वरप्रशमनः स्मृतः । For Private and Personal Use Only २५१ टीका - अनन्तर पादियोंकी गणना और गुण यह मगरका भेद है कछु आनाका गोही मगर साकुच घडियाल सूस इत्यादि यह पादी कहें हैं ।। ३९ ॥ यह मारक जलजीव हैं कछुवा नाका गोही मगर साकुच घरिआल सूस जो पादि हैं भी कोशस्थोंके समान गुणमें हैं मछलियोंके नाम और गुण मत्स्य मीन विकार उष वैसारिण अंडज ॥ ४० ॥ शकुल पृथुरोमा और सुदर्शन यह मछलियोंके नाहैं रोहू आदिक जो जीव हैं वे मत्स्य कहें हैं ॥ ४१ ॥ मत्स्य चिकने उष्ण मधुर भारी कफपित्तकों करनेवाले हैं और वात हरते पुष्ट शुक्रकों करनेवाले रोचक कवलकों बढानेवाले हैं ॥ ४२ ॥ तथा मद्य मैथुनमें आसक्तोंकों और दीप्तानियोंकोंभी हित है अनन्तर जांगल आदियोंके नाम गुण उनमें हरिणके गुण हरिण शीतल सूत्रों बढानेवाला दीपन हलका ॥ ४३ ॥ रस और पाकमें मधुर सुगन्धि सन्निपातकों हरता है अनन्तर काला हरिण एण कसैला मधुर रक्त पित्त कफवात इनकों हरता है ।। ४४ ।। और काविज रोचन बलके हित ज्वरकों हरनेवाला कहा है. अथ कुरङ्गतित्तिरवाराहसांबर सेधानामगुणाः. कुरंगो बृंहणो बल्यः शीतलः पित्तहृद्गुरुः । मधुरो वातग्राही किञ्चित्कफकरः स्मृतः ॥ ४५ ॥ ऋष्यो तीलाण्डकचापि गवयो रोध इत्यपि । गवयो मधुरो बल्यः स्निग्धोष्णः कफपित्तलः ॥ ४६ ॥
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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