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हरीतक्यादिनिघंटे राजीवोऽपि च मुण्डी चेत्याद्या जङ्घालसंज्ञकाः।
हरिणस्ताम्रवर्णः स्यादेणः कृष्णः प्रकीर्तितः ॥ १०॥ . टीका-मांसके नाम कहते हैं मांस पिशित क्रव्य आमिष पलल पल यह मांसके नाम हैं सव मांस वात हरते बृंहण बल पुष्टिको करनेवाले हैं ॥ १ ॥ और प्रीणन भारी हृद्य रस और पाकमेंभी मधुर अब उनके भेद कहतेहैं मांसवर्ग दोपकारका जानना चाहिये जाङ्गल और आनूप इन भेदोंसें ॥ २॥ उनमें जाङ्गलका लक्षण
और गुण यहांपर मांसवर्ग जंगलमें रहनेवाले बिलमें रहनेवाले गुहामें रहनेवाले तथा पर्णमृग विष्किर और प्रतुद ॥३॥ प्रसह और ग्राम्य यह आठ मांसकी जातीहै जांगल मधुर रूखे कसेले तथा हलके ॥ ४ ॥ बलकों देनेवाले पुष्ट शुक्रकों उत्पन्न करनेवाले दीपन दोष हरते गृङ्गापन मिनमिनापन गद्गदता तथा अर्दित ५ बहिरापन अरुचि वमन प्रमेह मुखके रोग श्लीपद गलगंड और वातके रोग इनकों रहतेहैं ॥ ६ ॥ आनूपमांसका लक्षण और गुण कहतेहैं कूलेचर प्लव कोशस्थ पादिन तथा मत्स्य यह पांच प्रकारकी आनूपजाति कहींहै ॥ ७॥ आनूप मधुर चिकने भारी अग्निमान्द्य करनेवाला कफकारी पिच्छिल और अत्यन्त मांस पुष्टिकों करनेवालेहै ॥ ८ ॥ तथा अभिष्यन्दी और प्रायः पथ्यतम कहे हैं अनन्तर जांगलोंकी गणना और विशेष गुण हरिण कुरंग ऋष्य पृषत न्यंकु सम्बर ॥ ९॥ राजीव मुण्डी इत्यादि यह जाङ्गलनाम हरिणके भेदहैं लालरंगका हरिण और काला एण कहाहै ॥ १०॥
कुरङ्ग ईषत्ताम्रः स्यादेणतुल्याकतिर्महान् । ऋष्यो नीलाङ्गको लोके सरोह्य इति कीर्तितः॥ ११ ॥ पृषतश्चन्द्रबिन्दुः स्यादरिणात्किञ्चिदल्पकः । न्यकुर्बहुविषाणोऽथ शम्बरो गवयो महान् ॥ १२ ॥ राजीवस्तु मृगो ज्ञेयो राजीभिः परितो तृतः । यो मृगो भृङ्गहीनः स्यात्स मुण्डीति निगद्यते ॥ १३ ॥ जंघालाः प्रायशः सर्वे पित्तश्लेष्महराः स्मृताः।
किञ्चिद्वातकराश्चापि लघवो बलवर्धनाः ॥ १४ ॥ टीका-कुछ एक लाल कुरंग होता है एणके समान अकृति बडा होता है नीलाङ्गक इस्को लोकमें सरोहि इसप्रकार कहाहै ॥ ११ ।। पृषत सफेद बुन्दकी
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