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शाकवर्गः। इक्ष्वाकुः कटुतुंबी स्यात्सा तुम्बी च महाफला । कटुतुम्बी हिमा हृद्या पित्तकासविषापहा ॥ ५८ ॥ तिक्ता कटुर्विपाके च वातपित्तज्वरान्तकत् । एर्वारुः कर्कटी प्रोक्ता कथ्यन्ते तद्गुणा अथ ॥ ५९ ॥ कर्कटी शीतला रूक्षा ग्राहिणी मधुरा गुरुः।
रुच्या पित्तहरा सामा पक्का तृष्णाग्निपित्तहत् ॥ ६॥ टीका-फलशाक उनमें पेठेके नाम और गुण कहतेहै कूष्माण्डका पुष्प और फल पीतपुष्प बृहत्फल यह पेठेके नाम, पेठा पुष्ट शुक्रकों करनेवाला भारी रक्त पित्त और वात इनकों हरताहै ॥ ५३ ॥ छोटा पित्तहरता और शीतल होताहै और मध्यम कफ करनेवाला तथा बडा बहुत शीतल नहीं होता और मधुर क्षारके सहित दीपन हलका ॥ ५४ ॥ बस्तिकों शुद्ध करनेवाला मानसिक रोगोंकों हरता और सब दोषोंकों हरनेवाला है छोटा पेठा बहुत हलका होताहै और इस्कों कर्कारुभी कहतेहैं छोटा पेठा काविज शीतल रक्तपित्तकों हरता और भारी होताहै ५५ पक्का तिक्त अग्निकों करनेवाला क्षारकेसहित कफवातकों हरताहै अलाबू तुम्बी यह लोकीके नामहैं यह दोपकारकी होतीहै लंबी और गोल ॥ ५६ ॥ मीठी तुम्बीके पत्र हृद्य पित्तकफकों हरते भारी होतेहैं और शुक्रकों करनेवाला रुचिकर धातुपुष्टिको बढानेवाला है ॥ ५७ ॥ इक्ष्वाकु कटुतुम्बी यह तिलोकीके नाम, वोह बडे फूलवाली होतीहै कडवी तुम्बी शीतल हृद्य पित्त कास विष इनकों हरताहै ॥५०॥ तिक्त विपाकमें कटु होतीहै और वात पित्त ज्वर इनकों हरतीहै ॥ ५९॥ एर्वारु कर्कटी यह काकडीके नामहैं अब उस्के गुण कहतेहैं कडवी रूखी शीतल काविज मधुर भारी रुचिकों करनेवाली पित्तहरती कच्ची होतीहै और पकीहुई तृषा अग्नि पित्त इनकों करनेवालीहै ।। ६० ।। अथ चिचिण्डाकारवेल्लमहाकोशातकीधामार्गवगुणाः.
जिचिण्डः श्वेतराजिः स्यात्सुदीर्घो गृहकूलकः । चिचिण्डो वातपित्तनो बल्यः पथ्यो रुचिप्रदः ॥ ६१ ॥ शोषिणोऽतिहितः किञ्चिद्गुणै!नः पटोलतः । कारवेल्लं कठिल्लं स्यात्कारवेल्ली ततो लघुः ॥ ६२ ॥
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