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॥ श्रीः ॥
हरीतक्यादिनिघंट
भाषाटीकासहित.
श्रीमथुरा निवासी पंडित रंगीलाल तथा श्रीयुतजगन्नाथ शास्त्री इन्होंसें यह भाषांतर करवायके,
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यह ग्रंथ
गौडवंशीय श्रीयुतभगीरथात्मज हरिप्रसादजी इन्होंनें विद्वानोंसें शुद्ध करवायके
बंबे में,
“निर्णयसागर " छापखानेमें छापके प्रसिद्ध किया.
शक १८१३, संवत् १९४८.
इसके सबप्रकारके हक्क प्रसिद्धकर्तानें अपने स्वाधीन रक्खे हैं.
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