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वटादिवर्गः।
१४९ अथ पलाशनामगुणाः. पलाशः किंशुकः पर्णो यज्ञियो रक्तपुष्पकः ॥ ४६॥ क्षारश्रेष्ठो वातहरो ब्रह्मवृक्षः समिद्वरः। पलाशो दीपनो वृष्यः सरोष्णो व्रणगुल्मजित् ॥ ४७॥
कषायः कटुकस्तिक्तः स्निग्धो गुदजरोगजित् । टीका-पलाश, किंशुक, पर्ण, यज्ञिय, रक्तपुष्प, ॥ ४६॥ क्षारश्रेष्ठ, वातहर, ब्रह्मक्ष, समिद्वर, यह पलाशके नाम हैं. पलाश दीपन, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, सर, उष्ण, और व्रण, वायगोला, इनको हरनेवाला है ॥ ४७ ॥ तथा कसेला, कडवा, तिक्त, चिकना, गुदाके रोगोंको हरनेवाला.
भग्नसन्धानकद्दोषग्रहण्य कमीन्हरेत् ॥४८॥ तत्पुष्पं स्वदु पाके तु कटु तिक्तं कषायकम् । वातलं कफपित्तास्त्रकृच्छजिद्राहि शीतलम् ॥४९॥ तृड्दाहशमकं वात्तरक्तकुष्ठहरं परम् । फलं लघूष्णं मेहार्शःकृमिवातकफापहम् ॥ ५० ॥ विपाके कटुकं रूक्षं कुष्ठगुल्मोदरप्रणुत् ।
___ अथ शाल्मलीनामगुणाः. शल्मलिस्तु भवेन्मोचा पिच्छिला पूरणीति च ॥ ५१ ॥ रक्तपुष्पा स्थिरायुश्च कण्टकाढया च तूलिनी। शाल्मली शीतला स्वादी रसे पाके रसायनी ॥ ५२ ॥
श्लेष्मला पित्तवातावहारिणी रक्तपित्तजित् । टीका-ठूटेहुवे हाडको जोडनेवाला, और संग्रहणी, ववासीर, कृमि, इनको हरता है ॥ ४८ ॥ उस्का पुष्प पाकमें मधुर, कडवा, तिक्त, कसेला होता है तथा वातकों करनेवाला, कफ, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ्र, इनको हरनेवाला, काविज, शीतल होताहै, ॥ ४९॥ और तृषा, दाहका शमन करनेवाला, अत्यन्त वातरक्त, और कुष्ठ इनकों हरता है. उस्का फल हलका, उष्ण होता है, और प्रमेह, बवासीर, कृमि,
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