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वटादिवर्गः।
१४७ गरम, मुखदन्तके रोग, रक्त, इनको हरनेवालाहै ॥ ३३ ॥ और खुजली, विष, कफ, कृमि, कुष्ठ, विष, व्रण, इनकों हरता है.
अथ रोहितक तथा बब्बूलनामगुणाः. रोहीतको रोहितको रोही दाडिमपुष्पकः ॥ ३४ ॥ रोहीतकः प्लीहघाती रुच्यो रक्तप्रसाधनः । बब्बूलः किङ्किरातः स्यात्किङ्किणश्च सपीतकः॥३५॥ स एव कथितस्तज्ज्ञैराभाषपदमोदिनी। बब्बूलः कफनुद् ग्राही कुष्ठकमिविषापहः ॥ ३६ ॥ अरिष्टकस्तु माङ्गल्यः कृष्णवर्णोऽर्थसाधनः।
रक्तबीजः पीतफेनः फेनिलो गर्भपातनः ॥ ३७॥ टीका-रोहितक इसमें अनारकेसे फूल होते हैं. रोहितक, रोहीतक, रोही, दाडिमपुष्पक, यह रोहीके नाम हैं ॥ ३४ ॥ रोही प्लीहकों हरनेवाली रुचिकों करनेवाली रक्तको स्वच्छ करनेवाली है. बबूल, किंकिरात, किंकिण, सपीतक, यह बबूलके नाम हैं ॥ ३५ ॥ उसीकों उस्के जाननेवालोंने आभाषपदमोदनी ऐसा कहाहै. कीकर कफहरता, काविज, कुष्ठ, कृमि, इनको हरताहै ॥ ३६ ॥ अरिष्टक, मांगल्य, कृष्णवर्ण, अर्थसाधन, रक्तबीज, पीतफेन, फेनिल, गर्भपातन, यह रीठेके नाम हैं ॥ ३७॥
अथ पुत्रीजीव तथा इंगुदीनामगुणाः. पुत्रीजीवो गर्भकरो यष्टीपुष्पोऽर्थसाधकः । पुत्रीजीवो गुरुर्वृष्यो गर्भदः श्लेष्मवातहत् ॥ ३८॥ सृष्टमूत्रमलो रुक्षो हिमः स्वादुः पटुः कटुः । इगुदोऽङ्गारतक्षश्च तिक्तकस्तापसद्रुमः ॥३९॥ इङ्गुदः कुष्ठभूतादिग्रहव्रणविषकमीन् ।।
हंत्युष्णश्वित्रशूलनस्तिक्तकः कटुपाकवान ॥ ४० ॥ टीका-पुत्रीजीव, गर्भकर, यष्टीपुष्प, अर्थसाधक, यह पुत्रजीवके नाम हैं. पुत्रजीव भारी शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला ॥३८॥ रुखा, शीतल, मधुर, नमकीन,
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