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वटादिवर्गः।
१४५ अतिसारको हरनेवाली, रक्त, पित्त, व्रण, इनको हरनेवाली पुष्टिकों करनेवाली कहीगईहै ॥ २२॥
अथ शिंशिपा(शीसम)नामगुणाः. शिशिपा पिच्छिला श्यामा कृष्णसारा च सा गुरुः। कपिला सैव मुनिभिर्भस्मगर्भेति कीर्तिता ॥ २३ ॥ शिशिपा कटुका तिक्ता कषाया शोषहारिणी। उष्णवीर्या हरेन्मेदःकुष्ठश्वित्रवमिक्रिमीन् ॥ २४ ॥
बस्तिरुग्वणदाहास्त्रबलासान् गर्भपातिनी । टीका-और कपिलवर्ण शीशमके नामगुण कहतेहैं. शिशिपा, पिच्छिला,श्यामा, कृष्णसारा, यह शीशमके नाम हैं. और वोह भारी होताहै. कपिला, भस्मगर्भा, ऐसा मुनियोंने कहाहै ॥ २३ ॥ शीशम कडवा, तिक्त, कसेला, शोषकों हरता है, उष्णवीर्य होता है, और मेद, कुष्ठ, श्वित्र, वमन, कृमि, इनकों रहताहै ॥ २४ ॥ और पेडकी पीडा, व्रण, दाह, रक्त, कफ, इनकोंभी हरता है, और गर्भकों गिरानेवाला है.
__ अथ ककुभ( कौह)नामगुणाः. ककुभोऽर्जुननामाख्यो नदीसर्जश्व कीर्तितः ॥ २५ ॥ इन्द्रद्रुर्वीरवृक्षश्च वीरश्च धवलः स्मृतः। ककुभः शीतलो हृद्यः क्षतक्षयविषास्त्रजित् ॥ २६ ॥
मेदोमेहव्रणान्हन्ति तुवरः कफपित्तहत् । टीका-ककुभ, अर्जुननामाख्य, नदीसर्ज ॥२५ ॥ इन्द्रदु, वीरवृक्ष, वीर, धवल, यह अर्जुनदृक्षके नाम हैं. अर्जुन शीतल, हृद्य, क्षत, क्षय, विष, रक्त, इनकों हरनेवाला है ॥ २६ ॥ और मेद, प्रमेह, व्रण, इनकों हरता है और कसेला है तथा कफ पित्तकों हरता है.
अथ बीजक( विजयसार )नामगुणाः. बीजकः पीतसारश्च पीतशालक इत्यपि ॥ २७ ॥ बन्धूकपुष्पः प्रियकः सर्जकश्वासनः स्मृतः।
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