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हरीतक्यादिनिघंटे
मुख, दंत, नेत्र, शिर, इनके रोग तथा विष इनकों हरती है ॥ २८ ॥ चाम्पेय, चम्पक, हेमपुष्प, यह चम्पेके नाम कहे हैं. इस्की फलीकों गन्धफली ऐसा पंडितोंनें कहा है ॥ २९ ॥ चम्पा कडवी, तिक्त, कसेला, मधुर, शीतल है और विष कृमि इनकों हरता तथा मूत्रकृच्छ्र, कफवात, रक्तपित्त, इनको हरनेवाला है ॥ ३० ॥ अथ बकुल (मौलसरी) नामगुणाः.
बकुलो मधुगन्धश्च सिंहकेसरकस्तथा । बकुलस्तुवरोऽनुष्णः कटुपाकरसो गुरुः ॥ ३१ ॥ कफपित्तविषश्वित्रकृमिदन्तगदापहः । शिवमल्ली पाशुपत एकाष्ठीलो वुको वसुः ॥ ३२ ॥ बुकोऽनुष्णः कटुस्तिक्तः कफपित्तविषापहः ।
योनिशूलतृषादाहकुष्ठशोथास्वनाशनः ॥ ३३ ॥
टीका - बकुल, मधुगन्ध, सिंहकेसरक, यह मौलसरीके नाम हैं. मौलसरी कसेली, शीतल, पाकरसमें कटु, हलकी, भारी है ॥ ३१ ॥ कफ, पित्त, विष, श्वित्र, कृमि, दन्तरोग, इनकों हरती है. शिवमल्ली, पाशुपत, एकाष्ठील, बुक, वसु, यह ast मौलसरीके नाम हैं ॥ ३२ ॥ मौलसिरी शीतल, कडवी, तिक्त है और कफ, पित्त, विपकों हरती है. योनिशूल, तृषा, दाह, कुष्ठ, रक्त, शोथ, इनकों ह रती है ॥ ३३ ॥
अथ कदम्ब तथा कुब्ज.
कदम्बप्रियको नीपो वृत्तपुष्पो हलिप्रियः ।
कदम्बो मधुरः शीतः कषायो लवणो गुरुः ॥ ३४ ॥ सरो विष्टम्भक्षः कफस्तन्यानिलप्रदः । कुञ्जको भद्रतरिणी बृहत्पुष्पोऽतिकेसरः ॥ ३५ ॥ महासहा कण्टकाद्या नीलालिकुलसङ्कुला । कुनकः सुरभिः स्वादुः कषायानुरसः सरः ॥ ३६ ॥ त्रिदोषशमनो वृष्यः शीतहर्ता च स स्मृतः । टीका - कदम्ब, प्रियक, नीप, वृत्तपुष्प, हरिप्रिय, यह कदंबके नाम हैं.
कदम
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