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हरीतक्यादिनिघंटे इक्ष्वालिकेक्षुगन्धा च तथा पोटगलः स्मृतः ॥ १६१॥ काशः स्यान्मधुरस्तिक्तः स्वदुपाकी हिमः शरः ।
मूत्रकृच्छ्राइमदाहास्त्रक्षयपित्तजरोगजित् ॥ १६२ ॥ टीका-कास १, कासेक्षु २, इक्षुसर ३, इक्ष्वालिक ४, इक्षुगन्धा ५, पोटगल ६, ये कासके नाम हैं ॥ १६१ ॥ ये मधुर, तिक्त, पाकमें मधुर, शीतल, दस्तावर, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, दाह, रक्तक्षय, और पित्तके रोगोंको जीतनेवाली है॥१६२॥
अथ गन्धपटेरनामगुणाः. गुन्द्रः पटेरकोरच्छः शृङ्गवेराभमूलकः। गुन्द्रः कषायो मधुरः शिशिरः पित्तरक्तजित् ॥ १६३ ॥ स्तन्यः शुक्ररजोमूत्रशोधनो मूत्रकृच्छ्रहृत् ॥ एरका गुन्द्रमूला च शिविर्गुन्द्रा शरीति च ॥ १६४ ॥ एरका शिशिरा वृष्या चक्षुष्या वातकोपिनी।
मूत्रकृच्छ्राश्मरीदाहपित्तशोणितनाशिनी ॥ १६५॥ टीका-गन्धपटेर १, कोरच्छ २, शृंगवेराभ ३, मूलक ४, ये गंधपटेरके नाम हैं. ये कसेला, मधुर, शीतल, पित्तरक्तकों जीतनेवाला है ॥ १६३ ॥ दूधकों उत्पन्न करता है, शुक्र, रज, मूत्र, इनका शोषक है, और मूत्रकृच्छ्रका नाशक है. ए. रका १, गुंद्रमूला २, शिरा ३, गुन्द्रा ४, शरी ५, ये मोथीके नाम हैं ॥ १६४ ॥ ये शीतल, धातुकों पुष्ट करनेवाली है, नेत्रोंके वातकों प्रकोप करनेवाली है, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, दाह, रक्तपित्त, इनको हरनेवाली है ॥ १६५ ॥
अथ कुशानामगुणाः. कुशो दर्भस्तथा बर्हिः सूच्यग्रो यज्ञभूषणः । ततोन्यो दीर्घपत्रः स्यात्क्षुरपत्रस्तथैव च ॥ १६६ ॥ दर्भद्वयं त्रिदोषघ्नं मधुरं तुवरं हिमम् ।
मूत्रकृच्छ्राइमरीतृष्णा बस्तिरुप्रदरास्वजित् ॥ १६७ ॥ टीका-कुश १, दर्भ २, वहीं ३, सूच्यग्र ४, यमभूषण, ये कुशाके नाम हैं. अब डाभके नाम कहे हैं इसकों दूसरेप्रकारका कुशा दीर्घपत्र १, क्षुरपत्र २, ये डा
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