________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१००
हरीतक्यादिनिघंटे टीका-स्वर्णवल्ली १, रक्तफला २, काकायु ३, काकवल्लरी ४ ॥ १४९ ॥ स्वर्णवल्ली माथेकी पीडाकों और त्रिदोषको हरनेवाली है और दुग्धों करनेवाली है.
अथ कार्पास(कपास)नामगुणाः. कार्पासी तुण्डकेरी च समुन्द्रान्ता च कथ्यते ॥ १५० ॥ कार्यासकी लघुः कोष्णा मधुरा वातनाशिनी । तत्पलाशं समीरघ्नं रक्तकन्मूत्रवर्धनम् ॥ १५१॥ तत्कर्णपीडिकातोदपूयास्त्रावविनाशनम् ।।
तबीजं स्तन्यदं वृष्यं स्निग्धं कफकरं गुरु ॥ १५२ ॥ टीका-कार्पासी १, तुण्डकेरी २, समुद्रान्ता ३, ये कपासके नाम हैं ॥१५॥ ये हलका है, थोडा गरम है, मधुर है, और वातनाशक है, और इसका पत्ता वातका हरनेवाला है, रक्तकों करनेवाला है, और मूत्रकी वृद्धि करनेवाला है॥१५१॥
और कर्णपीडा, नाद, पूयका स्राव, इनकामी हरनेवाला है, और इस्का बीज दूधको बढानेवाला है, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला है, कफकारी है, और भारी है१५२
अथ वंशनामगुणाः. वंशस्त्वक्सारकिर्मीरत्वचिसारस्तृणध्वजः। शतपर्वा शतफलो वेणुमस्करतेजनाः॥१५३ ॥ वंशः सरो हिमः स्वादुः कषायो बस्तिशोधनः । छेदनः कफपित्तनः कुष्ठास्त्रव्रणशोथजित् ॥ १५४ ॥ तत्करीरः कटुः पाके रसे रूक्षो गुरुः सरः। कषायः कफरुत्स्वादुर्विदाही वातपित्तलः॥१५५ ॥ तद्यवास्तु सरा रूक्षाः कषायाः कटुपाकिनः ।
वातपित्तकरा उष्णा बदमूत्राः कफापहाः॥ १५६ ॥ टीका-वंश १, खकसार २, किर्मीर ३, तृणध्वज ४, शतपर्वा ५, शतफल ६, वेणु ७, मस्कर ८, तेजन ९, ये वांसके नाम हैं ॥ १५३ ॥ ये वायुकों अनुलोमन करनेवाला है, शीतल है, मधुर है, कसेला है, मूत्राशयकों शोधे है, छेदन, कफपित्तका हारक, कुष्ठ, रक्त, व्रण, सूजन, इनको जीतनेवाला है ॥१५४॥ इसका
For Private and Personal Use Only