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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ हिजल(समुद्रफल)नामगुणा.: इजलो हिजलश्चापि निचुलश्चाम्बुजस्तथा। जलवेतसववेद्यो हिजलोयं विषापहः ॥ १३९ ॥ टीका-इज्जलकों समुद्रफल लोकमें कहते हैं. इज्जल १, हिज्जल २, निचुल ३, अम्बुज ४, ये समुद्रफलके नाम हैं. जलवेतसके समान इस्कों जानों. ये विषहारक है ॥ १३९ ॥ अथ अङ्कोट( हिंगोट )नामगुणाः. अङ्कोटो दीर्घकीलः स्यादकोलश्च निकोचकः । अङ्कोटकः कटुस्तीक्ष्णाः स्निग्धोष्णस्तुवरो लघुः ॥ १४०॥ रेचनः कमिशूलामशोफग्रहविषापहः । विसर्पकफपित्तास्त्रमूषकाहिविषापहः ॥ १४१ ॥ तत्फलं शीतलं स्वादु श्लेष्मघ्नं बृंहणं गुरु । बल्यं विरेचनं वातपित्तदाहक्षयास्त्रजित् ॥ १४२ ॥ टीका-अंकोट १, दीर्घकाल २, अंकोल ३, निकोचक ४, ये हिंगोटके नाम हैं. ये कडवा, तीक्ष्ण, चिकना, गरम, कसेला, और हलका है ॥ १४० ॥ रेचन है, कृमि, शूल, आम, सूजन, ग्रह, विष, इनका हरनेवाला है. विसर्प, कफ, रक्तपित्त, मूषा, सर्प, इनके विषका हरनेवाला है ॥ १४१ ॥ और उसका फल, शीतल और मधुर है, कफवातहारक, धातुको बढानेवाला, भारी, बलको करनेवाला, रेचक, वात, पित्त, दाह, क्षय, रक्त, इनका जीतनेवाला है ॥ १४२ ॥ (अथ वरिआर, सहदेवी, काकहिया,) (गुलशकरी, इति बलाचतुष्टयं) वाघा वाघालिका वाघा सैव वाघालकाऽपि च । महाबला पीतपुष्पा सहदेवी च सा स्मृता ॥ १४३ ॥ ततोऽन्यातिबला ऋष्यप्रोक्ता कंकतिका च सा। गाङ्गेरुकी नागबला ह्येषा ह्रस्वा गवेधुका ॥ १४४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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