SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ हरीतक्यादिनिघंटे ये लालचिरमिटीके नाम हैं. ये दोनों चिरमिटी केशोंकी हितकारक हैं, और बात, पित्तज्वरकी हारक हैं ।। १२७ ॥ और मुखशोष, भ्रम, श्वास, तृषा, मद, इनकभी हरनेवाली हैं. और नेत्ररोगोंको दूर करनेवाली, पुष्ट, बलकों करनेवाली, और कण्डू, व्रण, इनकोभी जीतनेवाली है ॥ १२८ ॥ और कृमि, इन्द्रलुप्त, लाल सफेद कुष्ट इनकाभी नाश करनेवाली है. अथ कपिकच्छू (किमांच ) नामगुणाश्च. कपिकच्छ्रेरात्मगुप्ता वृष्या प्रोक्ता च मर्कटी ॥ १२९ ॥ अजरा कण्डुरा व्यङ्गा दुःस्पर्शा प्रावृषायणी । लाङ्गुली शूकशिम्बी च सैव प्रोक्ता महर्षिभिः ॥ १३० ॥ कपिकण्डूर्भृशं वृष्या मधुरा वृंहणी गुरुः । तिक्ता वातहरी बल्या कफपित्तास्रनाशिनी ॥ १३१ ॥ तद्वीजं वातशमनं स्मृतं वाजीकरं परम् । टीका - कपिकच्छू १, आत्मगुप्ता २, हृष्या ३, मरकटी ४ ॥ १२९ ॥ अजरा ५, कण्डुरा ६, व्यंगा ७, दुःस्पर्शा ८, प्रावृषायणी ९, लांगली, १०, शुकशिम्बी ११, ये किमाचके नाम हैं. सो महर्षियोंनें कहे हैं ॥ १३० ॥ ये अत्यन्त धातुकों बढानेवाली, मधुर, पुष्ट, भारी, और दस्तावर वायकी नाशक, बलकों करनेवाली, तथा कफ, रक्तपित्त, इनको हरनेवाली है ॥ १३१ ॥ इस्का बीज वातनाशक है और अत्यन्त वाजीकरण, कहागया है. अथ रोहिणीनामरणाच. मांसरोहिण्यतिरुहा वृत्ता चर्मकरी कषा ॥ १३२ ॥ प्रहारवल्ली विकसा वीरवत्यपि कथ्यते । स्यान्मांसरोहिणी वृष्या सरा दोषत्रयापहा ॥ १३३ ॥ टीका - मांसरोहिणी १, अतिरुहा २, वृत्ता ३, चर्मकरी ४, कषा ५, ॥ १३२ ॥ प्रहारवल्ली ६, विकसा ७, वीरवती, ये रोहिणी के नाम हैं. ये पुष्ट, सर, त्रिदोष नाशक है ॥ १३३ ॥ अथ चिल्हकनामगुणाश्च. चिल्हको वातनिहरः श्लेष्मघ्नो धातुपुष्टिकत् । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy