SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे नीलीभी दोप्रकारकी है. मेउडीका पत्र कृमि, वात, कफ, इनका हरनेवाला तथा हलका है ॥ ११६ ॥ अथ कुटज(कुरैया)नामगुणाः. कुटजः कूटजः कोटी वत्सको गिरिमल्लिका। कालिगशकशाखी च मल्लिकापुष्प इत्यपि ॥ ११७॥ इन्द्रो यवफलः प्रोक्तो वृक्षकः पाण्डुरद्रुमः। कुटजः कटुको रूक्षो दीपनस्तुवरो हिमः ॥ ११८॥ अर्थोऽतिसारपित्तास्त्रकफतृष्णामकुष्ठनुत् । टीका-कुटज १, कूटज २, कोटी ३, वत्सक ४, गिरिमल्लिका ५, कालिंग ६, शक्रशाखी ७, मल्लिकापुष्प ८, ये कुरैयाके नाम हैं ॥ ११७॥ और इंद्रयव, फलवृक्षक, पांडुरद्रुम, येभी नाम हैं. ये कडवा, रूखा, दीपन, कसेला, और ठंडा है ॥ ११८ ॥ ववासीर, अतीसार, रक्तपित्त, तृषा, आम, इनका हरनेवाला है. अथ करंजनामगुणाः. करंजो नक्तमालश्च तथासौ चिरबिल्वकः ॥ ११९॥ घृतपूर्णकरोऽन्यः प्रकीर्यः पूतिकोऽपि च । स चोक्तः पूतिकरजः सोमवल्कश्च स स्मृतः ॥ १२०॥ करञ्जः कटुकस्तीक्ष्णो वीर्योष्णो योनिदोषहृत् । कुष्ठोदावर्तगुल्मार्थीव्रणमिकफापहः ॥ १२१ ॥ तत्पत्रं कफवातार्शःकमिशोथहरं परम् । भेदनं कटुकं पाके वीर्योष्णं पित्तलं लघु ॥ १२२॥ तत्फलं कफवातघ्नं मेहार्श कमिकुष्ठजित्।। घृतपूर्णकरोपि करञ्जसदृशो गुणैः ॥ १२३॥ टीका-करंज १, नक्तमाल २, चिरबिल्वक ३ ॥ ११९ ॥ घृतपूर्ण ४, और दुसरा करंज प्रकीर्य पूतिकभी कहते हैं. ये पूतिकरंज कहागया है. और उसीकों सोमवल्लभभी कहते हैं ॥ १२० ॥ ये कडवा, तीखा, गरम, वीर्यमेंगरम, योनिके For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy