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गहच्यादिवर्गः ।
वाला होता है ॥ ८७ ॥ गरम, भारी, घाव, खुजली, कफ, कृमि, विष इनकभी हरनेवाला है.
अथ वासक ( अरूसा) नामगुणाः.
वासको वासिका वासा भिषङ्माता च सिंहिका ॥ ८८ ॥ सिंहास्यो वाजिदन्ता स्यादाटरूषोऽटरूषकः । आटरूषो वृषस्ताम्रः सिंहपर्णश्च स स्मृतः ॥ ८९ ॥ वासको वातकृत्स्वर्यः कफपित्तास्त्रनाशनः ।
तिक्तस्तुवरको हृह्यो लघुः शीतस्तृडर्तिहृत् ॥ ९० ॥ श्वासकासज्वरच्छर्दिमेहकुष्ठक्षयापहः ।
टीका - वासक १, वासिका २, वासा ३, भिषमाता ४, सिंहिका ५ ॥ ८८ ॥ सिंहास्य ६, वाजिदन्ता ७, आटरूषक ८, ये वांसेके नाम हैं और वृष १, ताम्र २, सिंहपर्ण ३, यभी नाम हैं ॥ ८९ ॥ ये वातकारक, स्वरकों श्रेष्ठ करनेवाला, कफ रक्तपित्तका हरनेवाला है, तिक्त है, कसेला है, हृदयकों अच्छा करनेवाला, हलका, शीत, तृषा, पीडा, इनका नाशक है ॥ ९० ॥ श्वास, कास, ज्वर, वमन, प्रमेह, कुष्ठ, क्षय, इनकाभी हरनेवाला है.
अथ पर्पट (पित्तपापडा ) नामगुणाश्च.
पर्पटो वरतिक्तश्च स्मृतः पर्पटकश्च सः ॥ ९१ ॥ कथितः पांशुपर्यायस्तथा कवचनामकः । पर्पटो हन्ति पित्तास्रभ्रमतृष्णाकफज्वरान् ॥ ९२ ॥ संग्राही शीतलस्तितो दाहनुद्वातलो लघुः ।
टीका - पर्पट १, वरतिक्त २, पर्पटक ३ ॥ ९१ ॥ पशुपर्याय ४, और कवचनामक ५, ये पित्तपापडे के नाम हैं. ये पित्त, भ्रम, तृषा, कफ, ज्वर, इनकों हरता है ॥ ९२ ॥ और काविज, शीतल, तिक्त, दाहका करनेवाला, वातकारक है. अथ निम्ब (नीम ) नामगुणाश्च.
निम्बः स्यात् पिचुमर्दश्च पिचुमन्दश्च तिक्तकः ॥ ९३ ॥
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