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गडूच्यादिवर्गः। गुल्मिनां कुष्ठिनां चापि तथैवोदररोगिणाम् ॥ ७७॥
हितमेतद्विरेकार्थे ये चान्ये दीर्घरोगिणः। टीका-सेहुंड, सिंहतुण्ड, वज्री, वज्रद्रुम, सुधा, समंतदुग्धा, नुक् स्नुही, गुडा, ये थूअरके नाम हैं ॥ ७४ ॥ ये रेचन, तीक्ष्ण, दीपन, कटु, और भारी है. शूल, अष्ठीलिका, आध्मान, कफ, वायगोला, उदरवात ॥ ७५ ॥ उन्माद, मोह, कुष्ट, बवासीर, मूजन, मेद, पथरी, पांडु, घाव, ज्वर, स्नेही, विष, दूषीविष, इनकों हरनेवाला होता है ॥ ७६ ॥ थूअरका दूध गरम, स्निग्ध, कटु, अरु लघु होता है और गुल्म, कुष्ठ, उदर, इनरोगोंवालेकों ॥ ७७ ॥ ये विरेच देना हित है, तथा और दीर्घरोगियोंके वास्तेभी हितकारी कहा है. (अथ सेहुण्डभेदः शालला अनेनैव नाम्ना प्रसिद्धा)
शातला सप्तला सारा विमला विदुला च सा ॥ ७८ ॥ तथा निगदिता भूरिफेना चर्मकषेत्यपि । शातला कटुका पाके वातला शीतला लघुः॥ ७९ ॥
तिक्ता शोथकफानाहपित्तोदावर्तरक्तजित् । टीका-थोहरका भेद दूसरा शातलानामसें प्रसिद्ध है. शातला, सप्तला, सारा, विसला, विदुला ॥ ७८ ॥ भूरिफेना, चर्मकषा, ये शातलाके नाम हैं, ये पाकमें कटु होता है, और वायुको कारनेवाला, शीतल, हलकी, और तिक्त है ॥७९॥ तथा सूजन, कफ, अफरा, पित्त, उदावर्त, रक्त, इनको हरनेवाला है.
अथ शक्रपुष्पी(कलिहारी)नामगुणाः. कलिहारी तु हलिनी लागली शक्रपुष्प्यपि ॥ ८॥ विशल्याग्निशिखानन्ता वह्निवका च गर्भनुत् । कलिहारी सरा कुष्ठशोफार्शोव्रणशूलजित् ॥ ८१॥ सक्षारा श्लेष्मजित्तिक्ता कटुका तुवरापि च।
तीक्ष्णोष्णा कमिहल्लघ्वी पित्तला गर्भपातिनी ॥ ८२॥ टीका:-कलिहारी, हलिनी, लाङ्गली, शक्रपुष्पी ॥ ८० ॥ विशल्या, अग्निशिखा, अनन्ता, वह्निवक्रा, गर्भनुत्, ये कलिहारीके नाम हैं. ये सर है, कुष्ठ, शोफ
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