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गडूच्यादिवर्गः।
८३ मङ्गल्यनामधेया च शाकश्रेष्ठा पयस्विनी ॥ ५१ ॥ जीवन्ती शीतला स्वादुः स्निग्धा दोषत्रयापहा ।
रसायनी बलकरी चक्षुष्या ग्राहिणी लघुः ॥ ५२ ॥ टीका-जीवन्ती, जीवनी, जीवा, जीवनीया, मधुरस्रवा, मंगल्यनामधेया, शाकश्रेष्ठा, पयस्विनी, ये जीवन्तीके नाम हैं ॥ ५१॥ ये शीतल, मधुर, चिकनी, त्रिदोषकों हरनेवाली, रसायनी, बलकों करनेवाली, नेत्रोंका हित करनेवाली, काविज है, हलकी है ॥ ५२ ॥
अथ मुद्गपर्णी(वनमूग)नामगुणाः. मुद्गपर्णी काकपर्णी सूर्यपर्ण्यल्पिका सहा । काकमुद्रा च सा प्रोक्ता तथा मार्जारगंधिका ॥ ५३ ॥ मुद्गपर्णी हिमा रूक्षा तिक्ता स्वादुश्च शुक्रला। चक्षुष्या क्षतशोथनी ग्राहिणी ज्वरदाहनुत् ॥ ५४ ॥
दोषत्रयहरी लघ्वी ग्रहण्यर्थोऽतिसारजित्। टीका-मुद्गपर्णी १, काकपर्णी २, सूर्यपर्णी ३, अल्पिका ४, सहा ५, काकमुद्दा ६, मार्जारगंधिका ७, ये वनमूंगके नाम हैं ॥ ५३ ॥ ये शीतल, रूखी, तिक्त, मधुर, शुक्रकों उत्पन्नकरनेवाली, नत्रोंको हितकारक, क्षत, शोथ, इनकी नाशकारक है, काविज है ज्वर, और दाहकी हरनेवाली, है ॥ ५४॥ तीनों दोषोंको हरनेवाली, हलकी, और ग्रहणी, बवासीर, अतीसार, इनको जीतनेवाली है.
अथ माषपर्णीनामगुणाः. माषपर्णी सूर्यपर्णी काम्बोजी हयपुच्छिका ॥५५॥ पाण्डुलोमशपर्णी च कृष्णवृन्ता महासहा। माषपर्णी हिमा तिक्ता रूक्षा शुक्रबलास्त्रात् ॥ ५६ ॥
मधुरा ग्राहिणी शोथवातपित्तज्वरात्रजित् । टीका-माषपर्णी १, मूर्यपर्णी २, काम्बोजी ३, हयपुच्छिका ४ ॥ ५५ ॥ पाण्डु ५, लोमशपर्णी ६, कृष्णवृन्ता ७, महासहा ८, ये वनमाषपर्णीके नाम हैं. ये
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