________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तापदंशस्य पक्षान्तरमाह / जुहुयात् स्तोत्रमन्ववति / अयं हीमः प्रकरणात् पूजाङ्गम् // 35 // 36 // अस्याः जुहुयात् स्तोत्रमन्त्रैर्वा चण्डिकायै शुभं हविः / नमोनमः पर्देवौं पूजयेत्सुसमाहितः // 35 // प्रयत: प्राञ्जलिः प्रतः प्रणम्यारोप्यचात्मनि / मुचिरं भावयेदीशां चण्डिका तन्मयो भवेत् // 36 // एवं यः पूजयेत्या प्रत्यहं परमेश्वरीम् / भुक्ता कामान् यथाकामं देवीसायुज्यमाप्नुयात् // 37 // यो न पूजयते नित्य चण्डिकां भक्तवत्सलाम् / भस्मीकृत्यास्य पुण्यानि निर्दहेत्यरमेश्वरी // 38 // तस्मात् पूजयभूपाल ! सर्वलोक महेश्वरीम्। यथोक्तेन विधानेन चण्डिका मुखमाप्सासि // 36 // इति वैकृतिकरहस्यं समाप्तम् // काम्यत्वनित्यत्वे क्रमेणाह। एवं य इति द्वाभ्यां // 37 // 38 // उपसंहरति। तस्मादिति // 38 // इति श्रीगुप्तवत्या वैकतिरहस्य व्याख्या। For Private and Personal Use Only