________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 25 // 27 // रुधिराक्त नेति / ब्राह्मणादिभेदेन बलिव्यवस्थापूर्वमेवीका न प्र(वि) स्मर्त्तव्या // 28 // 28 // सिंहस्य वाहनात्मक रूपमाह। समयधर्ममिति / चतुर्दशविद्याविहितकात्मकमित्यर्थः // 30 // महिषान्तकरी येन पूजिता स जगत् प्रभुः / पूजयेज्जगतां धात्रौं चण्डिका भक्तवत्मलाम् // 26 // अादिभिरलङ्कारैर्गन्धपुष्पैस्तथाक्षतैः / धूपैर्दीपैश्च नैवेद्यैर्नानाभक्ष्यसमन्वितैः // 20 // मधिराक्तन वलिना मांसेन मुरया नृप। प्रणामाचमनीयेन चन्दनेन सुगन्धिना // 28 // सकर्पूरैश्च ताम्बूलैर्भक्तिभावसमन्वितैः / वामभागेऽग्रतोदेव्याश्छिन्नशौर्षे महासुरम् // 26 // पूजयेन्महिषं येन प्राप्त सायुज्यमीशया / दक्षिणे पुरतः सिंहं समग्रन्धर्ममीश्वरम् // 30 // वाहनं पूजयेहेव्या धृतं येन चराचरम्। यः कुर्यात् प्रयतो धीमांस्तस्या एकाग्रमानसः // 31 // यस्तस्याः पूजां कुर्यात्ससिंहं पूजयेदिति पूर्वणान्वयः // 31 // For Private and Personal Use Only