________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पतत्म चापि शस्त्रेषु संग्रामे भृशदारुणे सर्वाबाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा // 27 // स्मरन्ममैतच्चरितं नरोमुच्येत सङ्कटात् / मम प्रभावात् सिंहाद्या दस्यवो वैरिणस्तथा // 28 // दूरादेव पलायन्ते स्मरतश्चरितं मम / ऋषिमवाच / इत्युक्ता सा भगवती चण्डिका चण्डविक्रमा // 26 // पश्यतामेव देवानां तवैवान्तरधीयत / तेऽपि देवा निरातङ्काः खाधिकारान् यथा पुरा // 30 // यज्ञभाजभुजः सर्वे चक्रुर्विनिहतारयः / दैत्याश्च देव्या निहते शुम्भ देवरिपी युधि // 31 // जगद्विध्वंसिनि तस्मिन् महोग्रे तुलविक्रमे / निशुम्भं च महावीर्ये शेषाः पातालमाययुः // 32 // एवं भगवती देवी सा नित्यापि पुनः पुनः / संभूय कुरुते भूप ! जगतः परिपालनम् // 33 // // 27 // 28 // 28 // पश्यतामेवेति षष्ठी चाऽनादरे // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // For Private and Personal Use Only