________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. // 18 // तदेवपराक्रमाणां दैत्यानां हन्तृ वीर्यमित्यन्वयः // 20 // अतिहारि अतिसुन्दरम् वरदे वरान् खड्गप्रभानिकरविस्फुरणैस्तथोग्रैः शूलाग्रकान्तिनिवहेन दृशोऽसुराणाम्। यन्नागता विलयमंशुमदिन्दुखण्डयोग्याननं तव विलोकयतां तदेतत् // 16 // दुर्वृत्तवृत्तशमनं तव देवि ! शीलं रूपं तथैतदविचिन्त्यमतुल्यमन्यैः / वीर्यञ्च हन्तु हृतदेवपराक्रमाणां वैरिष्वपि प्रकटितव दया त्वयेत्यम् // 20 // केनोपमा भवतु तेऽस्य पराक्रमस्य रूपं च शत्रुभयकार्य तिहारि कुत्र। चित्ते कृपा समरनिष्ठुरता च दृष्टा त्वय्येव देवि ! वरदे ! भुवनत्रयेऽपि // 21 // वैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन वातं त्वया समरमूईनि तेऽपि इत्वा। नौता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्तमस्माकमुन्नदसुरारिभवन्नमस्ते // 22 // शूलेन पाहिनो देवि ! पाहि खङ्गेन चाम्बिके / / घटायगेन न: पाहि चापज्यानिःस्वनेन च // 23 // ददासौति कपा, वरान् दैत्यान् हंसि खण्डयसीति निष्ठुरता च // 21 // 22 // 23 // For Private and Personal Use Only