________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. उदग्रश्चरणे देव्याः शिलावृक्षादिभिर्हतः। दन्तमुष्टितलैश्चैव करालश्च निपातितः // 16 // देवी क्रुद्धा गदापातैश्चूर्णयामास चोदतम् / वाष्कलं भिन्दिपालेन बाणेस्ताम्र तथान्धकम् // 17 // उग्रास्यमुग्रवीर्यञ्च तथैव च महाहनुम् / विनेवा च त्रिशूलेन जघान परमेश्वरी // 18 // विड़ालस्यासिना कायात्यातयामास वै शिरः / दुर्धरं टुर्मुखं चोभी शरैर्निन्ये यमक्षयम् // 18 // एवं संक्षीयमाणे तु खसैन्ये महिषासुरः। माहिषेण स्वरूपेण वासयामास तान् गणान् // 20 // कांश्चितुण्डग्रहारेण खुरक्षेपैस्तथापरान्। लाङ्लताड़ितांश्चान्यान् शृङ्गाभ्याञ्च विदारितान् // 21 // वेगेन कांश्चिदपरान्नादेन भ्रमणेन च / निःश्वासपवनेनान्यान् पातयामासभूतले // 22 // निपात्य प्रमथानीकमभ्यधावत सोऽसुरः / सिंहं हन्तुं महादेव्याः कोपञ्चक्रे ततोऽम्बिका // 23 // मुष्टिभिस्तलेचपटाभिय // 15 // 17 // 18 // 18 // 20 // 21 // 22 // 23 // For Private and Personal Use Only