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१७७ बोरवंचट वि० बिलकुल साफ़ साफ़- चोदई वि० चोरी करनेका आदी; चोदा सुथरा
(२)सुच्चा; चांई चोगगे (चों) पुं० चारका आंक; ४ पोर(बॉड)स० कि.चिपकाना (२) जोग (चा) वि० चार गुना; चोगुना जड़ना; बिठाना (३)जमाना; लगाचोगमा (-रदम) (चाँ) अ०। चारों ना; मारना (धौल, सोंटा) (४)ठीक, दिशाओंमें; चौगिर्द
कठोर, लगती बात कहना भोपान (चौ) न० मैदान; चौगान पोगाई (चा स्त्री० चौड़ाई चोपडियां (चाँ) न० ब०व० चार चार चोर्ड(चाँ) वि० चौड़ा (२) चौहरा घड़ीके अंतर पर बजाये जानेवाले चोगे(चौ) पुं० एकके ऊपर एक रखी नगाड़े; गजर
ही चीजोंका ढेर; गड्डी चोपरियं (चाँ) न० चार घड़ी जितना नोतरक (चॉ)अ० चारों तरफ़; चौमिर्द समय (२)मुहूर्त ; साइत
चोतरो(चाँ) पुं० बड़ा चबूतरा; चौतरा चोट स्त्री० चोट ; आघात; वार(२) (२)धाना; चोकी [दोसूती; दुसूची घात; दावे; मौका (३)एक प्रकारका
चोला (चाँ) वि. चार तारोंवाला; तांत्रिक अभिचार; मारण; मूठ (४)
पोत्रीस (चौ)वि० चौंतीस; चौंतिस:३४ निशाना। [-लागवी, वागवी = अचूक
घोष (चॉथ,) स्त्री० चौथ; प्रत्येक वार होना; दावे या युक्तिका सफल
पक्षकी चौथी तिथि(२)देखिये 'चोथाई' होना(२)चोट लगना; जख्मी होना; चोथाई (चॉ) स्त्री० चौथाई; चौथा मोच आना.]
भाग (२) राजस्वका चतुर्थाश . चोट(-दूक, -) (चॉ) वि. चिप
चोषियु (चॉ) वि. चौथे दिन पर पड़नेकनेवाला; चमचिच्चड़
वाला (२)म० चौथा भाग (३)छोटे चोटली स्त्री० चोटी; शिखा (२)नारि
बालकको मृत्युके चौथे दिन होनेवाली
क्रिया या भोज यलके रैशे।[-पकडवी चोटी दबाना
चोथियो ( ताब) (चों) पुं० चौथे दिन (२)कान पकड़ना; क़बूल कराना।
भानेवाला ज्वर; चौथिया .. -मंतरवी = दाव-पेचसे बसमें करना;
चोद(वि)(चॉ)म. चौगिर्द; चौचोटी कतरना। -लई जवी= छलना.]
खूट; चतुर्दिक चोटलो पुं० स्त्रियोंकी चोटी; वेणी
बोगरी (चाँ) पुं० मुख्य माडीवान चोट, (चों)सक्रि० चिकनाईके कारण सारथि (२)गांवकी सीमाकी चौकी जुड़ना; चिपकना; (-से) लग जाना करके बख्शिसमें मिली हुई जमीनकी (२)चिमटना; आग्रहपूर्वक पकड़े रह- उपज लेनेवाला (३)पहाड़ों और जंगना; अड्डा जमाना [ला.](३)म०क्रि० लोंमें बसनेवाली एक जाति बैठना(तुच्छकारमें). .
पोषसे (चों) पुं० गांवका मुखिया; चोटाम्बु (चों) स० कि० चिपकाना..
मुखिया; गोषरी (२) चौधरी' चोटी स्त्री० चोटी; शिखा
जातिका भावमी गु. हि-१२
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