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बोर
भारी; घोर; अत्यंत ( निद्रा, बन, अज्ञान, अंधेरा आदि)
घोर स्त्री० गोर; कब्र चोरखोदियो पुं० गोरकन (२) गोर खोदकर मुर्देको खा जानेवाला एक प्राणी (३) हीन कर्म करनेवाला [ला. ] घोरलोबु वि० विनाशक; जो विनाश
करने पर आमादा हो घोरखोतुं न० गोर खोदकर मुर्देको खा जानेवाला एक प्राणी घोर अ० क्रि० ( नींदमें) नाकसे खरंस्वरंकी आवाज निकालना (२) खर्राटे लेना; गहरी नींद सोना
घोरी वि० नींद लेनेका आदी ; खर्राटेबाज़
घोरी पुं० गल्ला; गोरू (चरनेके लिए आने-जानेवाला)
बोलक (-की) स्त्री ०, -क) न० बिलकुल छोटा प्रकाशरहित घर; 'स्लम'; घरौंदा
घोळ स० क्रि० पिलपिलाना ( २ )
च पुं० 'च' वर्गका - तालुस्थानीयपहला व्यंजन
चक पुं० चिक; जालीदार परदा
चकचक अ० झलाझल; चमाचम चकचक अ० क्रि० चमकना; झलकना चकचकाट पुं० चमक; झलक; कांति avefeo वि० चमकदार ; चमकीला चकचार स्त्री० पूछताछ; चर्चा चकचूर वि० ग़रक़; बदमस्त ( किसी नशेसे) (२) अ० चकनाचूर
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घोलना (३) मिलाना (४) जोरसे घुमाना; चक्कर देना । [घोळी पीहूं, घोळीने पी जवुं = कुछ न समझना; न बदना; बसमें न रहना. ] घोळाघोळ (ळी) स्त्री० बहुत घोलना; चक्कर देना (२) विचारोंका मनमें चक्कर खाना; मनकी डांवाडोल स्थिति; उधेड़-बुन
घोळाबुं स०क्रि० 'घोळवूं 'का कर्मणि । [ धोळाया कर = देर करना (२) किसी बात या विचारका मनमें बारबार उठना.]
घोंघाट (चॉ० ) पुं० शोर-गुल ; चिल्लपों are (घो०) स्त्री० लीकमें पड़ा हुआ गहरा गड्ढा; बड़ी गड़ारी (२) चुभने से हुआ घाव, या उसका असर; चुभन (३) नुक़सान [ला.] । [-मां पडं : | = लीकमें पड़कर गति मंद होना; खटाई में पड़ना; रुका पड़ा रहना. ] घोंचपरोणो पुं० बार-बार पैना भोंकना aaj (घ) स०क्रि० भोंकना; चुमाना
चकडोल ( -ळ) पुं० पालने जैसी डोलीका बना, नीचे ऊपर चक्कर खानेवाला एक झूला ; हिंडोला (२) घुमड़ी चक्कर । [चकडोळे च = हिंडोलेमें बैठकर झूलना (२) नशा छाना, चढ़ना (३) उलझन में पड़ना; मन डोलना (४) बारबार स्थगित - मुल्तवी रहना. ] चकती स्त्री० छोटा गोल चपटा टुकड़ा; चकती
चतुं न० किसी खाद्य वस्तुका गोल
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