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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताधर्मकथाको यथा काल्याः काली देव्या वर्णनं तथा विज्ञेयम् , नवरम् अयं विशेषः पूर्वमवे अरक्षुयों नगयों मुरमभस्य गाथापतेः, सूरश्रियो भार्यायाः सुरममा दारिका, सूरस्य अग्रमहिषी स्थितिरर्द्ध पल्योपमं पश्चभिर्वर्षशतैरभ्यधिकम् । शेषं यथा काल्याः। एवं शेषा अपि-आतपादिकाः देव्यो वाच्याः । सर्वाः पूर्वभवे अरक्षुयाँ नगर्यामासन् । सू०१२॥ ॥ इति धर्मकथानां सप्तमो वर्गः समाप्तः ॥७॥ का वृत्तान्त लिखा जा चुका है-वैसा ही हैं। उसमें कुछ अन्तर नहीं है (णवरं ) परन्तु जिन बातों में अन्तर है-वह इस प्रकार है-(पुत्वभवे) यह पूर्वभव में (अरक्खुरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावहस्स सूरसिंरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया सूरस्स अग्गहिसी ठिई अद्धपलिओवमं पंचहि वाससएहि अभिहियं सेसं जहा कालीए एवं सेसाओ विसव्वाओ अरक्खुरीए गयरीए १२) अरक्षुर नामकी नगरी में निवास करनेवाले सूरप्रभा गाथापति की सूर श्री भार्या की कुक्षि से अवतरी थी। इसका नाम सूरप्रभा था। यह सूर की अग्रमहिषी हुई। इसकी वहां पांचसो वर्ष से अधिक अर्धपल्य की स्थिति है। और इसका इस अवस्था का समस्त वर्णन काली समान ही है। इसी तरह का आतपाआदिक ३ देवियों का भी जीवन वृत्तान्त है। ये ३ तीनों ही देवियां अपने २पूर्वभव में अरक्षुर नगरी में जन्मी थीं। सू०१२ ॥ __-सप्तमवर्ग समाप्त:આનું વર્ણન કાલી દેવીના વર્ણન જેવું જ સમજી લેવું જોઈએ, તેમાં કોઈ ५५ तन तावत नथी. (णवर') ५ २ बातम त छ, ते ॥ प्रभा छे. (पुधभवे ) | पूनम (अरक्खुरीए नयरीए सूरप्पमस्त गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए मुरप्पमा दारिया मूरस्स अग्गमहिसी ठिई अद्धपलिभोवमं पंचहि वाससरहिं अब्भडियं सेसे जहा कालीए, एवं सेसाओ वि सम्बाओ अरक्खुरीए गयरीए १२) : અરફુરી નામની નગરીમાં રહેનારી સૂપ્રભા ગાથાપતિની સૂરશ્રી ભાર્યાના ગર્ભથી જન્મ પામી હતી, તેનું નામ સૂરજ પ્રભા હતું. તે સૂરની અગ્નમહિષી ( પટરાણી) થઈ તેની ત્યાં પાંચ વર્ષ કરતાં વધારે અર્ધપત્યની સ્થિતિ છે. તેનું આ અવસ્થા વિષેનું બધું વર્ણન કાલીના જેવું જ છે. એ પ્રમાણે જ આતા વગેરે ૩ દેવીઓનું પણુ જીવનવૃત્તાંત છે. આ ત્રણે દેવીઓ પિતપિતાના પૂર્વભવમાં અરશુર નગરમાં જન્મ પામી હતી. સૂ૦૧૨ સાત વર્ગ સમાસ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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