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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गारधर्मामृतवर्षिणी डी० श्रुं. २ व. २ शुभनिशुंभादिदेवीवर्णनम् 4 एवं सेसावि ' इत्यादि - एवं शेषाण्यपि - निशुम्भा १ - रम्भा २ - निरम्भा ३- मदना ४ नामकानि चत्वारि अध्ययनानि श्रावस्त्या नगर्या विज्ञेयानि, नवरम् - एतावान् विशेषः - मातरः पितरः सदृशनामानः दारिका सदृशनामानः, तथाहिनिशुम्भाया माता निशुम्भश्रीः, पिता निशुम्भः । रम्भाया माता रम्भश्रीः, पिता रम्भः । निरम्भाया माता निरम्भश्रीः, पिता निरम्भः । मदनाया माता मदनश्रीः पिता मदनः । एते सर्वे गाथापतयः आसन् । एवं खलु हे जम्बू : ! निक्षेपको द्वितीयवर्गस्य ॥ ७ ॥ ॥ इति धर्मकथानां द्वितीयो वर्गः समाप्तः ॥ २ ॥ ८१९ ર For Private and Personal Use Only कालीदेवी का है वैसा ही जानना चाहिये। उसमें और इसमें केवल अन्तर इतना ही है कि कालीदेवी की स्थिति २ ॥ पल्य की थी और इस शुभादेवी की ३||, पल्य की थी। इस प्रकार हे जंबू ! इस द्वितीयबर्ग के प्रथम अध्ययन का यह निक्षेपक है । इसी तरह निशुंभा, रंभा निरम्भा और मदना नाम के चार अध्ययन भी जानना चाहिये । इन में विशेषता केवल इतनी ही हैं कि यहां जो माता पिता हैं वे दारिका सदृश नामवाले हैं- जैसे निशुभा के पिता का नाम निशुंभ, माता का नाम निशुंभ श्री, रंभाके पिता का नाम रम्भ, माताका नाम रम्भश्री, निरंभा के पिता नाम निरंभ माता का नाम निरंभश्री, मदना के पिता का नाम मदन, और माताका नाम मदनश्री । ये सब ही गाथापति हैं। इस तरह यह द्वितीयवर्ग का निक्षेपक- उपसंहार हैं। ॥ द्वितीयवर्ग समाप्त ॥ લેા જ છે કે કાલી દેવીની સ્થિતિ રા પક્ષ્યની હતી અને આ શુભા દેવીની સ્થિતિ ૩ા પલ્પની હતી. આ પ્રમાણે હું જબૂ! આ ખીજા વર્ગના પ્રથમ અધ્યયનને આ નિક્ષેપક છે. या प्रमाणे निशुला, रंला, निरंला भने મદના નામના ચાર અયના પણ જાણી લેવાં જોઇએ. એમનામાં વિશેષતા ફક્ત એટલી જ છે કે અહીં જે માતાપિતા છે તે પુત્રીના જેવા જ નામવાળા છે. જેમકે નિશુંભાના પિતાનું નામ નિશુંભ, માતાનું નામ નિશુભશ્રી, ભા ના પિતાનું નામ ર'ભ, માતાનું નામ ર'ભશ્રી નિર'ભાના પિતાનું નામ નિરભ, માતાનું નામ નિરલશ્રી, મદનાના પિતાનુ' નામ મદન અને માતાનું નામ મદનશ્રી, આ બધા ગાથાપતિ છે આ પ્રમાણે બીજા વના નિક્ષેપ ઉપસ‘હાર છે. जीले वर्ग समाप्त ॥
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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