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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ममगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १८ सुसमादारिकावर्णनम् दारगाहोत्था,तं जहा-धण्णे धणपाले, धणदेवे, धणगोवे, धणरक्खिए। तस्स णं धण्णस्त सत्थवाहस्सधूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजातीया सुंसुमाणामं दारिया होत्था, सूमालपाणिपाया, तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स चिलाए नामं दासचेडे होत्था, अहीणपंचिंदियसरीरे मंसोवचिए बालकीलाव. णकुसले यावि होत्था। तएण से चिलाए दासचेडे सुंसुमाएदारियाए बालग्गाहे जाए यावि होत्था । सुसुमं दारियं कडीए गिण्हइ, गिणिहत्ता, बहहिं दारएहि यदारियाहि य बालेहि बालियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं आभिरममाणे२ विहरइ। तएणं से चिलाए दासचेडे तेसि बहूर्ण दारियाण य जाव अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ, एवं वदृइ आगेलियाओ, तेंदुसए, पोतुल्लए, साडोल्लए, अप्पेगइयाणं आभरणमल्लालंकारं अवहरइ अप्पेगइए आउस्सइ, एवं अवहसइ निच्छोडेइ, निब्भच्छेइ तज्जेइ, अप्पेगइए तालेइ । तएणं ते बहवे दारगा य ६ जाव रोयमाणा य कंदमाणा य साणं २ अम्मापिऊणं णिवेदेति । तएणं तेसिं बहूणं दारगाणय ६ जाव अम्मापियरो जेणेव धन्ने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धन्ने सत्थवाहे बहहिं खिजणाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणाहिय रुंटमाणाहि य उवलंभमाणा य धण्णस्स एयमटुं णिवेदति ॥ सू० १ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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