SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ममनारथमतिपचिणी डी० ५० १६ द्रौपदी चरित निरूपणम् देवीए मग्गणगवेसणं करितए, तरणं से कण्हे वासुदेवे कोंती पिउच्छि एवं वयासी - जं णवरं पिउच्छा ! दोवइए देवीए कत्थइ सुई वा जाव लभामि तो णं अहं पायालाओ वा भवणाओ अद्धभरहाओ वासमंतओ दोवई साहस्थि उवणेमित्तिकद्दु कोंतीं पिउत्थि सक्कारेइ संमाणेइ जाव पडिविसजेइ, तरणं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसिं पाउ० तामेव दिसिं पडिगया ॥ सू० २५ ॥ " टीका - तणं से ' इत्यादि । ततः खलु स युधिष्ठिरो राजा ततो मुहूर्तान्तरे प्रतिबुद्धः सन् द्रौपदीं देवीं पार्श्वे 'अपासमागो' अपश्यन्=अनवलोकयन् शयनीयादुत्तिष्ठति, उत्थाय द्रौपद्या देव्याः सर्वतः समन्ताद् मार्गणगवेषणं करोति, कृत्वा द्रोपद्या देव्या ' कत्थइ ' कुत्रापि ' मुह ' श्रुतिं सामान्यवृत्तान्तं वा, ' खुइ ' क्षुतिं ठिकादि शब्दं वा ' पवत्तिं ' प्रवृत्तिं वा विशेषवृत्तान्तं अलभमानो , तएण से जुहिट्ठिल्ले राया इत्यादि ॥ टीकार्थ - (एणं) इसके बाद (से जुहिट्ठिल्ले राया) वे युधिष्ठिर राजा (तओ मुहततरस्स) एक मुहूर्त्त के बाद (पडिबुद्धे समाणे ) जगे - और जगकर उन्होंने (दोवई देवीं) द्रौपदी देवी को (पासे अपासमाणो सयणि. जाओ उट्ठेह, उट्ठसा दोवईए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ ) अपने पास जब नहीं देखा तो वे अपनी शय्या से उठे और उठकर द्रौपदी देवीकी सबओर से उन्होंने मार्गणा गवेषणाकी (करिता दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पवन्ति वा अलभमाणे जेणेव पंडुराया 'तरण' से जुहिट्ठिल्ले राया ' इत्यादि ॥ , टीडार्थ - (तएण ) त्यारपछी ( से जुहिट्ठिल्ले राया ) ते युधिष्ठिर शब्न ( तओ मुहुत्त तररस ) मे भुहूर्त माह ( पडिबुद्धे समाणे ) लग्या रमने लगीने तेम (दोवई देवी ) द्रौपदी देवीने, ( पासे अपासमाणो सयणिज्जाओ उट्ठे, उट्ठित्ता दोवईए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करे ) જ્યારે પેાતાની પાસે જોઈ નહિ ત્યારે પેાતાની શય્યા ઉપરથી ઊભા થયા અને ઊભા થઈને દ્રૌપદી દેવીની ચામેર માણા ગવેષણા કરી. ( करिता दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पवर्त्ति वा अलभमाणे ६१ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy